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2024 लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल चुनाव नतीजों पर क्या मोदी का जादू ममता मैजिक के सामने कारगर साबित होगा?

नन्द दुलाल भट्टाचार्य, हक़ीकत न्यूज़, पश्चिम बंगाल  : लोकतंत्र में चुनाव परिणाम अंकगणित पर नहीं बल्कि जमीनी स्तर की रसायन, आम मतदाताओं के बीच राजनीतिक दल की स्‍वीकार्यता और स्थानीय राजनितिक नेतृत्व की कार्यशैली पर आधारित होते हैं। पश्चिम बंगाल में आगामी लोकसभा चुनाव  का गणित और रसायन भी इसी और इशारा कर रहे है।

         पश्चिम बंगाल की राजनीतिक पृष्ठभूमि जो आने वाले २०२४ ( 2024) के लोकसभा चुनाव परिणामों को प्रभावित करेंगे

पश्चिम बंगाल में राजनीतिक क्षेत्र पर मुख्य रूप से सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी का पूर्ण वर्जस्व है। इस राजनितिक समीकरण का आधार  २०११ (2011) के चुनावी परिणामों ने रख दिया था जब तृणमूल कांग्रेस और इंडियन नेशनल कांग्रेस की गठबंधन ने पूर्ण बहुमत सीटें जीतीं और दुनिया में सबसे लंबे समय (३४ (34) साल) लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित कम्युनिस्ट सरकार जो अपने आप को पिछड़े, दलितों, अल्पसंख्यकों, श्रमिकों  का मसीहा जाहिर करते थे  को हरा दिया। इसके बाद से पश्चिम बंगाल का  राजनीतिक परिदृश्य बहुत जल्दी और पूरी तरह बदल गया। अगर हम सूक्ष्म दृष्टि से आम मतदाताओं की शृंखला पर नजर डालें तो ग्रामीण बंगाल में दलित, महिलाओं ,अल्पसंख्यक और श्रमिक वर्ग का समीकरण मुख्य रूप से वंचितों के लिए विभिन्न लाभार्थी कार्यक्रमों कन्याश्री, सबुज साथी, खाद्य साथी, स्वास्थ्य साथी जैसी कई कल्याणकारी योजनाएं और विकास परियोजनाएं के चलते तृणमूल कांग्रेस का  एक वफादार समर्थन आधार तैयार हो गया है। २०१४ (2014) के लोकसभा चुनाव से भारतीय जनता पार्टी का जनाधार बढ़ना शुरू हो गया और २०१९ (2019) तक भाजपा अपने आप को बंगाल राजनीति में मुख्य विपक्षी दल का दर्जा देने में कामयाब रही मूलतः मध्यम वर्ग का समर्थन और आधार लेने में भाजपा पूरी तरह सफल रही और इसका श्रेय बहुत हद तक भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व का रहा। अपनी संगठनात्मक ताकत के बावजूद वाम मोर्चा का लगातार गिरता जनाधार और चुनावी सफलता पाने में असमर्थ क्योंकि वंचितों, श्रमिक वर्ग, अल्पसंख्यकों के चैंपियन के रूप में इनकी स्‍वीकार्यता अब नहीं रह गई है उसकी जगह तृणमूल कांग्रेस ने ले ली है  इसके अलावा वह अभी भी अपने ३४ (34) साल के शासन का नकारात्मक बोझ ढो रहें हैं। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, जिसका पश्चिम बंगाल की राजनीति में एक प्रमुख ताकत होने का एक लंबा इतिहास रहा है अब प्रासंगिकता और अस्तित्व के संकट का सामना कर रही है। स्वाभाविक पसंद होने के बावजूद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के पास न तो जमीनी स्तर पर संगठनात्मक ताकत है और न ही कोई जन स्वीकार्य नेतृत्व है जो बंगाल में राजनीतिक परिदृश्य को बदल सके। तो स्वाभाविक रूप से २०२४ ( 2024) के लोकसभा चुनाव में मूल रूप से तृणमूल कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी आमने सामने रहेंगे और सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बीच कड़ा मुकाबला होने की उम्मीद है। २० (20)  ज़िलों में जमीनी स्तर पर समाज के विभिन्न वर्गों से बातचीत और उनकी सोच के आदान प्रदान को आधार माने तो आने वाले लोक सभा चुनाव में  भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, वाम मोर्चा, इंडियन सेक्युलर फ्रंट (आईएसएफ) को कुछ वोट तो प्राप्त हो सकते हैं पर संसदीय संख्या ( सीट) कितने मिलेंगे जमीनी स्तर पर इनका सही चित्रण स्पष्ट रूप से उभर कर नहीं आ रहा है। सही मायने में आम इंसान की  नब्ज पर पकड़ और सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) को राजनितिक चुनौती देने की स्थिति में इनका जनाधार  नहीं हैं।

पश्चिम बंगाल लोकसभा चुनावी नतीजों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का प्रभाव

पश्चिम बंगाल में लोकसभा चुनाव नतीजों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का प्रभाव काफी बहस का विषय रहा है। नरेंद्र  मोदी राज्य में सक्रिय रूप से प्रचार कर रहे हैं। भाजपा की रणनीति में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) सरकार के तहत भ्रष्टाचार और शासन के मुद्दों को उजागर करना और विकल्प के रूप में अपनी स्वयं की कल्याणकारी योजनाओं को बढ़ावा देना शामिल है। चुनाव परिणामों पर “मोदी जादू” का वास्तविक प्रभाव विभिन्न कारकों पर निर्भर करेगा, जिसमें भाजपा की अभियान रणनीतियों की प्रभावशीलता, मतदाता, मतदान और पश्चिम बंगाल में स्थानीय राजनीति की गतिशीलता शामिल है। ऐसे कई कारक हैं जो पश्चिम बंगाल में मोदी जादू की सीमा तय कर सकते हैं। एक तो राज्य की सामाजिक-सांस्कृतिक विविधता है, जिसमें एक बड़ी मुस्लिम आबादी (27%) है, साथ ही विभिन्न भाषाई और जातीय समूह भी हैं, जैसे नेपाली, बिहारी, राजबोंगशी, आदिवासी और अन्य। इन समूहों की केंद्र और राज्य सरकारों से अलग-अलग प्राथमिकताएँ और अपेक्षाएं हो सकती हैं, और ये आसानी से मोदी के राष्ट्रवादी और हिंदुत्व-उन्मुख एजेंडे से प्रभावित नहीं हो सकते हैं। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी  जो राज्य में बड़े पैमाने पर प्रचार कर रहे हैं और खुद को एक निर्णायक नेता के रूप में पेश कर रहे हैं जो विकास और सुरक्षा प्रदान कर सकते हैं। मोदी की अपील को उनके समर्थक अक्सर ‘मोदी जादू’ के रूप में वर्णित करते हैं, जो मानते हैं कि वह अपने करिश्मे और बयानबाजी से मतदाताओं को प्रभावित कर सकते हैं। लेकिन पश्चिम बंगाल में मोदी का जादू कितना प्रभावी रहेगा यह तो वक़्त ही बतायेगा ? मोदी मैजिक का पश्चिम बंगाल के लोकसभा चुनावों पर कुछ असर हो सकता है, लेकिन यह तृणमूल कांग्रेस की लोकप्रियता को  पार पाने के लिए पर्याप्त नहीं हो सकता है।

          पश्चिम बंगाल लोकसभा चुनावी नतीजों  पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के करिश्माई नेतृत्व का असर

बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के रूप में एक करिश्माई नेता हैं जो लोकप्रियता, कल्याणकारी योजनाओं और क्षेत्रीय पहचान से बंगाल में जनप्रियता के शीर्ष पर हैं और राज्य में मतदाताओं की पसंद को बहुत हद तक प्रभावित करने में अब तक कामयाब रहीं हैं। इस आने वाले लोकसभा चुनाव में तृणमूल सुप्रीमो को समाज के कुछ वर्गों  की नाराजगी का सामना करना पड़ सकता है जो इनकी  शासन शैली, असहमति के प्रति असहिष्णुता से नाखुश हैं। और कुछ हद तक शिक्षित युवा बेरोजगार भी नाखुश हैं लेकिन पश्चिम बंगाल के विभिन्न जिलों में मतदाताओं से जमीनी स्तर की प्रतिक्रिया यह जाहिर कर रही है की तृणमूल कांग्रेस आने वाले लोकसभा चुनाव में अपनी सीटों में एक अच्छी खासी बड़ोतरी करने में कामयाब रहेगी और एक आश्चर्यजनक आंकड़ा भी छू सकती है।

निष्कर्ष : चुनाव कई प्रभावों की एक जटिल परस्पर क्रिया है और प्रजातंत्र में चुनावी सफलता में कारकों के साथ -साथ मतदाताओं की नब्ज पर पकड़ के रसायन की भी बहुत हद तक जरूरत है। चुनावी परिणाम  कई कारकों पर निर्भर हो सकते हैं, जैसे जाति, धर्म, भाषा, जातीयता, विकास, शासन और नेतृत्व। इस आने वाले लोकसभा चुनाव में बंगाल के चुनावी प्रचार में जहाँ एक तरफ भाजपा  प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को लोकप्रिय और एक निर्णायक नेता के रूप में पेश कर रहे हैं वहाँ दूसरी तरफ तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो ममता बनर्जी जो लोकप्रियता के शीर्ष पर हैं एक भारी जनाधार के साथ ममता मैजिक भी इस चुनाव में करिश्मा दिखा सकतीं हैं। मोदी मैजिक का पश्चिम बंगाल के लोकसभा चुनावों पर असर हो सकता है, लेकिन यह तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो की लोकप्रियता को पार पाने के लिए शायद पर्याप्त नहीं हो सकता है। बंगाल के ज़िलों और ग्रामीण क्षेत्रों में मतदाताओं से बातचीत के दौरान एक तस्वीर उभर कर आ रही है की इस चुनाव में तृणमूल कांग्रेस अपनी सीटों में एक अच्छा खासा इज़ाफ़ा कर सकता है। भाजपा  अपने २०१९(2019) के  प्रदर्शन को दोहराने में कामयाब हो सकती है और कुछ सीटों का इज़ाफ़ा भी कर सकती है । वाम मोर्चा, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, इंडियन सेक्युलर फ्रंट कितने सफल रहेंगे इस पर एक बड़ा प्रश्न चिन्ह जरूर है? लेकिन इनके वोटों की संख्या भाजपा और तृणमूल कांग्रेस दोनों प्रमुख दलों की सीटों पर सीधे तौर पर असर जरूर डालेगी। आने वाला चुनाव किसके पक्ष में कम और किसके पक्ष में ज्यादा जायेगा यह तो वक़्त और मतदाता (भाग्यविधाता)  तय करेंगें  लेकिन एक बात तो तय है की पश्चिम बंगाल के मतदाता अपने विकल्पों पर सावधानीपूर्वक विचार करेंगे और अपने हितों और आकांक्षाओं के आधार पर अपनी पसंद और ना पसंद मतदान में जाहिर करेंगे।

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Nanda Dulal Bhatttacharyya

Nanda Dulal Bhatttacharyya

पेशे से पत्रकार, निष्पक्ष, सच्ची और ज़मीन से जुड़ी रिपोर्टिंग का जुनून

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