नन्द दुलाल भट्टाचार्य, हक़ीकत न्यूज़, पश्चिम बंगाल : आजकल महंगाई बड़ी आजाद घूम रही है तभी तो आम इंसान की इतनी दुर्दशा हो रही है। गांवों से लेकर छोटे कस्बों और महानगरों तक महंगाई ने किसी को नहीं बख्शा है। एक ही कहानी लाखों आवाज़ों में सुनाई दे रही है, हर कोई अपनी निजी निराशा में बयान कर रहा है और उम्मीद की धीमी गति को साझा कर रहा है। पिछले कुछ महीनों से आवश्यक घरेलू वस्तुओं जैसे – दूध, मसाले, सब्जियां, दालें, खाद्य तेल, मांसाहारी वस्तुएं, अंडे और किराना सामान की कीमतों में भारी वृद्धि के कारण आम इंसान को अपनी रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने में बहुत अधिक परेशानियों का सामना करना पर रहा है। इस अत्यधिक आर्थिक बोझ ने लगभग कमर ही तोड़ दी है। पिछले कुछ महीनों में दूध, मसाले, सब्जियाँ, दालें, खाद्य तेल, मांसाहारी खाद्य पदार्थ, अंडे और कई अन्य किराना वस्तुओं की कीमतों में भारी वृद्धि ने परिवारों के मेनू से कई खाद्य पदार्थों को हटा दिया है। बुनियादी ज़रूरत की चीज़ों की बढ़ती कीमतों ने परिवारों पर अतिरिक्त बोझ डाल दिया है जिनका जीवन पहले से ही ईंधन की कीमतों में वृद्धि के कारण मुश्किल था। कठोर वास्तविकता यह है कि समाज के हर वर्ग का घरेलू बजट पूरी तरह से असंतुलित हो गया है और आम इंसान को परिवार की रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करना लगभग नामुमकिन सा हो गया है। संतुलित भोजन के लिए महत्वपूर्ण माने जाने वाले अधिकांश सामान आम इंसान की जेब पर भारी पड़ रहे हैं। एक साल की अवधि में इन वस्तुओं की कीमतों में दो से तीन गुना वृद्धि दर्ज की है। सबसे बड़ी समस्या यह है कि अधिकांश लोगों की आय अपरिवर्तित है और साथ ही दैनिक आवश्यक वस्तुओं की कीमतें आसमान छू रहीं हैं । हममें से अधिकांश लोग अभी भी एक साल पहले की तुलना में उतना ही कमा रहे हैं, लेकिन जीवन-यापन की लागत दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। यह न केवल किसी व्यक्ति या समुदाय को नुकसान पहुंचा रहा है, बल्कि इसका समग्र अर्थव्यवस्था पर दीर्घकालिक आर्थिक प्रभाव पड़ेगा। लगातार लोगों की क्रय शक्ति कम होती जा रही है और आवश्यक वस्तुओं की कीमतें दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं। इस तरह की असमानता के साथ आम इंसान कितने वक़्त तक जीवित रह सकता है?
मुद्रास्फीति क्या है और आम इंसान पर इसका कितना प्रभाव पड़ता है?
सरल शब्दों में कहें तो मुद्रास्फीति तब होती है जब भोजन, कपड़े, आवास, परिवहन आदि जैसी आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में वृद्धि होती है इसलिए, सब कुछ महंगा हो जाता है। हमारे देश में आम तौर पर मुद्रास्फीति को मापने के लिए दो प्रकार के सूचकांकों का उपयोग किया जाता है- संपूर्ण मूल्य सूचकांक (WPI- Wholesale Price Index ) और उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI- Consumer Price Index ) बढ़ती महंगाई के कारण उपभोक्ता क्रय शक्ति खो रहे हैं, जो इस बात का माप है कि आप मुद्रा की एक इकाई से कितनी वस्तुएँ या सेवाएँ खरीद सकते हैं, यह सामान्य से अधिक तेज़ी से घट रहा है। अगर आप कुछ महीने पहले ₹45 में एक लीटर गाय का दूध खरीद सकते थे और अब आप इसे केवल ₹50 में खरीद सकते हैं, तो आपके पैसे का मूल्य कम हो गया है। और भारत के आम उपभोक्ता इस महंगाई से सबसे ज़्यादा पीड़ित हैं, क्योंकि वे न्यूनतम मज़दूरी पर सीमित क्रय शक्ति के साथ अपने दैनिक खर्चों का प्रबंधन करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
मूल्य वृद्धि के पीछे का कारण और इसके प्रभाव
मूल्य वृद्धि के कारक तो बहुत सारे हैं। हम अब वैश्वीकृत ( globalised) दुनिया में रह रहे हैं। यूक्रेन में युद्ध ने मुश्किलें काफी हद तक बढ़ा दी हैं। युद्ध ने वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान पैदा किया है और कच्चे तेल और अन्य वस्तुओं की कीमतों को बढ़ा दिया है। ईंधन की ऊंची कीमतों से परिवहन लागत बढ़ जाती है, जिससे दैनिक खाद्य वस्तुओं के साथ-साथ आवश्यक गैर-खाद्य उत्पादों पर अतिरिक्त बोझ पड़ता है। ईंधन, तेल और यात्रा की कीमतों में इस बढ़ोतरी के परिणामस्वरूप फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स (FMCG ) जैसे साबुन, तेल, शैम्पू और प्रसादन सामग्री उत्पादक कंपनियों ने भी अपने उत्पादों की कीमतों में वृद्धि की है। घरेलू रसोई गैस सिलेंडर, जिसे एलपीजी सिलेंडर भी कहा जाता है, की कीमत में बढ़ोतरी ने भी बहुत ज्यादा असर डाला है। महंगी स्वास्थ्य सेवाओं ने भी घर के मासिक बजट पर बहुत हद तक असर डाला है क्योंकि सरकार ने फार्मा कंपनियों को ज़रूरी दवाओं की कीमतें बढ़ाने की अनुमति दे दी है। इस बढ़ोतरी में दर्द निवारक, एंटीबायोटिक, हृदय संबंधी दवाएँ और कुल 850 फ़ॉर्मूलेशन शामिल हैं।
निष्कर्ष : हमारे देश में आम लोगों के दैनिक जीवन पर मुद्रास्फीति और मूल्य वृद्धि का गहरा प्रभाव पड़ रहा है। आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं की लागत में लगातार वृद्धि घरेलू बजट पर काफी दबाव डाल रही है, खासकर असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले जो न्यूनतम वेतन कमाते हैं। हमारे देश में असंगठित क्षेत्र, कार्यबल का एक बड़ा हिस्सा है जो देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कुल कार्यबल का लगभग ९० (90) प्रतिशत हिस्सा असंगठित क्षेत्र में कार्यरत हैं और पहले से ही रोजगार की असुरक्षा से जूझ रहें हैं ऊपर से इस महंगाई की मार ने उनका कमर ही तोड़ दिया है। जैसे-जैसे कीमतें बढ़ रही हैं, रुपये की क्रय शक्ति कम होती जा रही है। जिसका अर्थ है कि व्यक्ति समान राशि में कम वस्तुओं और सेवाओं को वहन कर सकता है। जिसके परिणामस्वरूप बुनियादी आवश्यकताओं की गुणवत्ता या मात्रा से समझौता करना पड़ सकता है। मुद्रास्फीति के प्रभाव ग्रामीण आबादी के लिए अधिक गंभीर हो रहे हैं, जहाँ दैनिक जीवन का एक महत्वपूर्ण घटक, भोजन की मुद्रास्फीति दर अक्सर शहरी क्षेत्रों की तुलना में अधिक होती है। यह असमानता मौजूदा असमानताओं को बढ़ा सकती है और अधिक लोगों को गरीबी में धकेल सकती है। इसके अलावा, उच्च मुद्रास्फीति दर बचत को कम कर सकती है, जिससे आम आदमी के लिए भविष्य की योजना बनाना या शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा या सेवानिवृत्ति में निवेश करना कठिन हो जाता है। हमारे में मुद्रास्फीति के कारण बहुआयामी हैं, जिनमें ईंधन की बढ़ती कीमतें, आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान और वैश्विक बाजारों में उतार-चढ़ाव जैसे कारक शामिल हैं भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) मौद्रिक नीति के माध्यम से मुद्रास्फीति को प्रबंधित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, लेकिन आर्थिक विकास को बढ़ावा देने और मूल्य वृद्धि को नियंत्रित करने के बीच अक्सर एक नाजुक संतुलन बनाना पड़ता है। संक्षेप में, हमारे देश के आम लोगों पर मुद्रास्फीति और मूल्य वृद्धि का प्रभाव बहुत हद तक पर रहा है,जो उनकी क्रय शक्ति, बचत और जीवन की समग्र गुणवत्ता को प्रभावित कर रही है। यह एक जटिल मुद्दा है जिसके लिए नीति निर्माताओं द्वारा समाज के सबसे कमजोर वर्गों पर इसके प्रतिकूल प्रभावों को कम करने के लिए सावधानीपूर्वक विचार और प्रबंधन की आवश्यकता है।
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