नन्द दुलाल भट्टाचार्य, हक़ीकत न्यूज़, मथुरा, उत्तरप्रदेश : आम चुनावों की घोषणा होते ही समाचार माध्यमों में जनमत सर्वेक्षण पेश करने की होड़ सी लग जाती है। आजकल मीडिया घरानों द्वारा आयोजित जनमत सर्वेक्षण चुनावी परिदृश्य का एक प्रमुख हिस्सा बन गए हैं जो संभावित चुनाव परिणामों के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं। हर समाचार पत्रिका और न्यूज़ चैनल अपने जनमत सर्वेक्षण को सठिक ठहराने में उतारू हो जाते हैं, लेकिन क्या यह जनमत सर्वेक्षण हक़ीक़त में तथ्यात्मक यथार्थवादी एवं भरोसेमंद हैं ? विभिन्न कारकों के कारण इन सर्वेक्षणों की विश्वसनीयता पर अक्सर सवाल उठाए जाते हैं? इनमें नमूना लेने के लिए उपयोग की जाने वाली पद्धति, नमूना जनसंख्या का आकार और जनसांख्यिकी, प्रश्नों का सूत्रीकरण शामिल है। इसके अतिरिक्त, मीडिया घरानों का स्वामित्व और फंडिंग भी जनमत सर्वेक्षण की निष्पक्षता पर एक बड़ा प्रश्न चिन्ह खड़ा कर देता है। हमारे देश में समाचार माध्यमों द्वारा दिए गए ओपिनियन पोल्स की विश्वसनीयता पर आम लोगों की राय बंटी हुयी है। आम लोगों का कुछ प्रतिशत इन सर्वेक्षणों पर कुछ हद तक विश्वास करते हैं हालांकि, कुछ अन्य लोगों का मानना है कि इन पोल्स में पक्षपात होने की संभावना को नकारा नहीं जा सकता है क्योंकि मीडिया घरानों के अपने हित हो सकते हैं। समाचार पत्रों, टेलीविजन, और सोशल मीडिया पर प्रसारित इन पोल्स के परिणाम हर वक़्त सार्वजनिक मत का सही प्रतिबिंब नहीं होते। कुछ सर्वेक्षण ऐतिहासिक रूप से सटीक रहे हैं, अन्य ने जनता की राय का भ्रामक प्रतिनिधित्व किया है। इसलिए ऐसे जनमत सर्वेक्षणों के बारे में मतदाताओं को स्रोतों की विश्वसनीयता और सर्वेक्षण प्रक्रिया की पारदर्शिता जैसे सर्वेक्षण की समग्रता, प्रश्नावली की संरचना, सैंपल साइज, और सैंपलिंग मेथड की प्रमाणिकता का गंभीर मूल्यांकन करना बहुत महत्वपूर्ण है। जनमत सर्वेक्षण मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकते हैं लेकिन इन जनमत सर्वेक्षणों पर आँख मूँद कर विश्वास करना शायद सही नहीं होगा। और सर्वेक्षणों को अन्य कारकों और सूचना के स्रोतों के मुकाबले अच्छी तरह तौला जाना चाहिए।
जनमत सर्वेक्षणों के संबंध में प्रयुक्त पद्धतियां
समाचार माध्यम हमारे देश में जनमत सर्वेक्षण कुछ सूत्रीय पद्धतियों द्वारा करते हैं । आमतौर पर ये पद्धतियाँ विभिन्न स्रोतों से डेटा एकत्रित करने, डेटा का विश्लेषण करने, और परिणामों की व्याख्या करने के लिए संरचित होती हैं। सर्वेक्षण की प्रक्रिया में सैंपल साइज, सैंपलिंग मेथड, मार्जिन ऑफ एरर ( margin of error), और वोटिंग प्रक्रिया जैसे महत्वपूर्ण पहलुओं पर विचार किया जाता है। सैंपल साइज चुनाव सर्वेक्षण की सटीकता को बहुत हद तक प्रभावित करता है और इसे समुदाय के आकार के हिसाब से समायोजित किया जाता है। सैंपलिंग मेथड में, सरल रैंडम सैंपलिंग ( simple random sampling), स्ट्रेटीफाइड सैंपलिंग ( stratified sampling), क्लस्टर सैंपलिंग( cluster sampling), और मल्टी-स्टेज सैंपलिंग ( multi-stage sampling) जैसी प्रक्रियाएं शामिल होती हैं। मार्जिन ऑफ एरर (margin of error)की अवधारणा सर्वेक्षण परिणामों की सटीकता को मापने के लिए महत्वपूर्ण है। यह एक प्रतिशत में व्यक्त की जाने वाली संख्या है, जो दर्शाती है कि सर्वेक्षण के परिणाम संभावित रूप से सही मूल्य से कितना भिन्न हो सकते हैं। मूलतः यह जनमत सर्वेक्षण ज्यादातर सिमित संख्या के आधार पर सूत्रीय पद्धतियों द्वारा होता है जो अपने में एक बड़ा सवाल खड़ा कर देता है की क्या कुछ लोगों की सोच पुरे मतदाताओं की सोच हो सकती है ?
निष्कर्ष : प्रजातंत्र में चुनावी प्रक्रिया लोकतंत्र का महापर्व है जिसमे आम इंसान लोकतंत्र की मूल भावना के तहत अपने मतदान के माध्यम से राजनितिक या व्यक्तिगत उम्मीदवारों का चयन अपने इलाके के प्रतिनिधित्व करने हेतु करते हैं। प्रजातंत्र के इस महापर्व ( आम चुनाव) में ओपिनियन पोल जैसे उपकरण बहुतायत में शामिल हो गये हैं। ओपिनियन पोल शब्द का जिक्र होते ही हमारे देश में लोगों के दिमाग में तुरंत चुनाव सर्वेक्षण, एग्जिट पोल और सीट की भविष्यवाणियां आ जाती हैं जो देश में हर बार चुनाव होने पर जनसंचार माध्यमों में दिखाई देते हैं। चुनाव सर्वेक्षणों को हमारे देश में सीटों की भविष्यवाणी करने और मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए एक उपकरण की तरह उपयोग किया जाता है। चुनाव पूर्व सर्वेक्षण और एग्ज़िट पोल, जो चुनाव के दौरान विजेताओं की भविष्यवाणी करने के लिए मीडिया घरानों द्वारा बड़े पैमाने पर किए जा रहे हैं। जनमत सर्वेक्षण जनता की राय में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकते हैं लेकिन उनकी विश्वसनीयता उनकी कार्यप्रणाली की अखंडता, उनके आचरण की पारदर्शिता और उन्हें आयोजित करने वाले संगठनों की स्वतंत्रता पर निर्भर करते हैं। मीडिया आउटलेट्स के लिए सख्त मानकों का पालन करना और जनता के लिए सर्वेक्षणों के निष्कर्षों का आलोचनात्मक मूल्यांकन करना बहुत ही आवश्यक है। यह ओपिनियन पोल और एग्जिट पोल बहुत हद तक एक मीडिया नौटंकी बनकर रह गये हैं जो अक्सर टीआरपी (TRP) में बढ़ोतरी के लिये उपयोग किये जा रहें हैं। कुछ हद तक आरोप यह भी है कि इसका उपयोग राजनीतिक दलों, मीडिया और व्यावसायिक घरानों के निहित स्वार्थ वाले समूह द्वारा मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए संचार उपकरण के रूप में किया जाता है। हमारे देश में मीडिया घराने और टेलीविजन एंकर वास्तविक वोट पड़ने से पहले, चुनाव परिणामों की भविष्यवाणी करने में और जनमत सर्वेक्षण के निष्कर्षों का उपयोग करने में आधुनिक “नोष्ट्राडमस” (Nostradamus) बन गए हैं, जो अक्सर कई मौकों पर गलत साबित हुए हैं। हमारे जैसे जीवंत लोकतंत्र में ओपिनियन पोल और एग्जिट पोल आम निर्वाचन में निर्णायक कारक नहीं होते। निर्णायक कारक आम इंसान की सोच और धारणा है जो लोकतंत्र की चालिका शक्ति हैं ।
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