नन्द दुलाल भट्टाचार्य, हकीक़त न्यूज़, पश्चिम बंगाल :
सार्वजनिक संस्थाओं की अक्षमता
कुछ भी ना हो पाने का एक कारण यह है कि सरकार का पूरा तंत्र ही ढीला–ढाला है, विभागों में विभाजित है, जिसमें प्रतिस्पर्धा करने वाले प्रमुख हैं जो आसानी से ज़िम्मेदारी एक दूसरे पर डाल देते हैं। चूंकि कोई भी कार्यालय या व्यक्ति काम को पूरा करने के लिए जवाबदेह नहीं है। कुशासन ने हमें एक व्यक्ति के रूप में प्रदूषित और अपंग बना दिया है। हमारे नेता अपने सुरक्षा कवच में रहते हैं और वास्तविकता की उपेक्षा करते हैं। उन्हें अपने भत्ते,सुविधाऐं ,सुरक्षा तो भरपूर मिलते हैं लेकिन उनके द्वारा बनाए गए भारत (बुनियादी मुद्दों से झुझता आम इंसान) का सामना करने से कतराते हैं और अनुचित को उचित ठहराने का निरंतर प्रयास करते रहते हैं। भारत को फिर से बनाने के लिए सरकार को शासन के संचालन नियमावली ( Manual) को फिर से लिखना होगा और इसकी वितरण प्रणालियों का पुनर्गठन करना होगा। हमारे देश में अपनाई जाने वाली सकारात्मक कार्रवाइयों की विश्वसनीयता पर सवाल उठाने के कई कारण भी हैं। सालों से चल रही इन नाकामियों और रचनात्मक विचारों की कमी की वजह से आम इंसान को इसका खामियाजा भुगतना पर रहा है। प्रत्येक घटना के बाद, प्रशासन द्वारा दिखावटी प्रचार–प्रसार किया जाता है। स्थिति को सही दृष्टिकोण से देखने के बजाय, अंततः राजनीतिक दोषारोपण का खेल शुरू हो जाता है, जिसका कोई सकारात्मक परिणाम नहीं निकलता और अगली घटना के घटित होने का इंतजार किया जाता है। प्रशासन की नाकामियों को सूक्ष्म नजरिये से समझने के लिए इन हादसों के क्रम को समझने की कोशिश करते हैं।
नागरिक परिसेवाओं में प्रशासनिक तंत्र की विफलता
विकास पथ के विभिन्न मार्ग अनिवार्य रूप से सार्वजनिक संस्थाओं से संबंधित हैं। प्रशासनिक और गैर–प्रशासनिक दोनों क्षेत्रों (निजी और सार्वजनिक दोनों) में समझौतापूर्ण शासन व्यवस्था ना केवल खराब सामाजिक और आर्थिक प्रदर्शन का कारण बन रही है बल्कि पूरे सिस्टम में आम नागरिकों के बीच समग्र आपसी विश्वास को भी बहुत हद तक कमजोर कर रही हैं। एक कमजोर प्रशासन आम हित के लिए सार्वजनिक सेवा वितरण में भ्रष्टाचार और अक्षमता उत्पन्न करता है, जिससे सामाजिक कल्याण में समझौता होता है और अविकसितता के बने रहने के साथ आर्थिक मोर्चे पर अपेक्षित प्रगति में बाधा उत्पन्न होती है। हमारे देश में नागरिक चार्टर सेवा वितरण के मानक, गुणवत्ता और समय सीमा, शिकायत निवारण तंत्र, पारदर्शिता और जवाबदेही के प्रति संगठन की प्रतिबद्धता के लिए सरकार ने वेब साइट ( Website) तो बना दिया है पर अधिकांश क्षेत्र में यह एक कागजी दिखावा के रूप में काम कर रहा है। लेकिन इस नागरिक चार्टर के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से कोई उद्देश्यपूर्ण ,समयबद्ध, प्रतिक्रिया तंत्र नहीं रखा है और ज़मीनी हकीक़त कुछ और ही बयान कर रही है। सरकारी अधिकारियों के काम करने का नजरिया ही कुछ और है। टेलीफ़ोन नंबर तो हैं लेकिन कोई सुनने वाला नहीं आप ईमेल भेजिए को उत्तर नहीं आप चिट्ठी भेजिए कोई अभिस्वीकृति (acknowledgement) नहीं और अगर गलती से कोई स्वीकृति भेजा भी जाता है उसमें समस्या के समाधान की बजाय उलझने पैदा की जातीं हैं। और सरकार अपनी नाकाम,अकुशल, गैरजिम्मेदार अधिकारियों के बलबूते पर अपना पीठ थपथपाने में मशगूल है। बेचारा आम नागरिक सदियों से इन नाकामियों के बीच पिसता चला आ रहा है। कई सरकारें आयी और गयीं पर मूल विषय पर किसी भी राजनीतिक दल ने गंभीरता से संभोदित नहीं किया है।
निर्भया कांड से आरजीकर मेडिकल कॉलेज कांड तक महिला सुरक्षा पर विफलताओं की हकीक़त
1- न्याय की एक कठोर कहानी
निर्भया सामूहिक बलात्कार :१६ (16) दिसंबर २०१२ (2012) को दिल्ली में निर्भया के साथ जो हुआ, उसने पूरे देश को झकझोर दिया। २३ (23) वर्षीय युवती से चलती बस में ना सिर्फ सामूहिक बलात्कार किया गया बल्कि हद दर्जे की हैवानियत भी की गई थी। युवती १३ (13) दिनों तक मौत से जूझने के बाद २९ ( 29) दिसंबर को सिंगापुर के अस्पताल में दम तोड़ दिया था ।
2- सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल
बुलंदशहर सामूहिक बलात्कार कांड : २०१६ (2016) साल के अंत में यमुना एक्सप्रेस–वे पर कार सवार मां बेटी को सामूहिक बलात्कार का शिकार बनाया गया। यह परिवार एक रिश्तेदार की तेरहवीं में शामिल होने नोएडा जा रहा था, पत्थर मारकर बदमाशों ने कार रुकवाई और खेतों में ले जाकर मां के सामने ही १४ (14) साल की बेटी का सामूहिक बलात्कार किया। फिर मां का भी बलात्कार किया। .
3- न्याय की अनसुलझी उम्मीदें
हैदराबाद कांड : २०१९ (2019) में तेलंगाना में पशु चिकित्सक का बलात्कार और हत्या। युवती की अधजली लाश टोल प्लाजा के पास मिली थी। जांच कर्ताओं के अनुसार यह भी सामूहिक बलात्कार की शिकार थी।
4- एक बच्ची के अधिकारों का हनन
कठुआ कांड : जम्मू–कश्मीर के कठुआ में २०१८ (2018) में आठ साल की बच्ची का सामूहिक बलात्कार और सर कुचलकर मारने की दर्दनाक घटना सामने आयी थी।
5- समाज की संवेदनहीनता
हाथरस सामूहिक बलात्कार कांड : १४ (14) सितंबर २०२० (2020) को उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले में एक दलित युवती का सामूहिक बलात्कार किया गया था। घटना के दो सप्ताह बाद दिल्ली के एक अस्पताल में युवती की मौत हो गई थी। यह सामूहिक बलात्कार कांड भी देशभर में सुर्ख़ियाँ बना था।
6. एक डॉक्टर की असुरक्षित यात्रा
आरजीकर मेडिकल कॉलेज कांड : एक बेटी जो डॉक्टर बनने के सपने संजोये उसी संस्थान में दरिंदगी का शिकार बनी जहाँ वह काम कर रही थी। यह घटना सिर्फ महिला सुरक्षा का सवाल नहीं बल्कि ऐसा दाग है जो शायद ही कभी धूल पाये।
क्या हमारे देश में महिलाएँ सुरक्षित हैं?
निष्कर्ष: अगर हम घटनाओं के कालक्रम को देखें एक के बाद एक नृशंस कांड घटते गये कुछ घटनाओं में कड़ी सजा हुई और कुछ शायद समय के प्रवाह में बह गये। लेकिन इतनी घृणित घटनाओं के बावजूद वारदातों में कोई कमी नहीं आयी। हर घटना के बाद महिला सुरक्षा को लेकर प्रशासन की तरफ से बढ़े–बढ़े दावे किये गये मगर हक़ीक़त में यह सिर्फ खोखले दावे बनकर रह गये। हर वारदात के बाद सही दिशा में सक्रिय होने के बजाय हर प्रशासन बचाव करने के लिए रक्षात्मक मोड में चले जाते हैं ,कुछ दिनों के प्रदर्शनों , रैलीयों, नेताओं के भाषण तक सिमट कर रह जाते हैं और शायद अगली घटना घटने का इंतजार करते हैं। पर क्यों ?? इन नृशंस घटनाओं की पूरी तरह से रोकथाम के लिये हर राजनीतिक नेतृत्व की मानसिकता में आमूल और सठिक परिवर्तन के साथ कानून और तेजी से कार्रवाई की सख़्त जरुरत है।
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