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राजनीति राज्य

पश्चिम बंगाल में सिकुड़ता विपक्ष क्या प्रजातंत्र के लिए हितकारी है?

नन्द दुलाल भट्टाचार्य, हक़ीकत न्यूज़, पश्चिम बंगाल : हाल ही में हुए २०२४ के  लोकसभा चुनावों ने एक स्पष्ट तस्वीर पेश की है की पश्चिम बंगाल का जनादेश कमोबेश दो राजनीतिक दलों तृणमूल कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के बीच था। राज्य की सियासी पृष्ठभूमि और जनादेश का रुझान पूरी तरह समझने के लिए हाल में ख़त्म हुये लोकसभा चुनावी परिणामों का एक विश्लेषणात्मक जायजा लेना जरूरी है।

                            चुनाव परिणामों का विश्लेषणात्मक अवलोकन

  1. तृणमूल कांग्रेस – 27,564,561 वोट प्राप्त हुए – 45.76% जो 2019 चुनाव के मुकाबले 2.46 परसेंट पॉइंट ज्यादा था और 29 सीटें जीतीं।
  2. भारतीय जनता पार्टी – 23,327,349 वोट प्राप्त हुए – 38.73 % जो 2019 चुनाव के मुकाबले 1.97 परसेंट पॉइंट कम था और 12 सीटें जीतीं
  3. इंडियन नेशनल कांग्रेस – 2,818,728 वोट प्राप्त हुए – 4.68 % जो 2019 चुनाव के मुकाबले 0.99 परसेंट पॉइंट कम था और 1 सीट जीतीं
  4. वाम मोर्चा – 3,416,941 वोट प्राप्त हुए – 5.67% जो 2019 चुनाव के मुकाबले 0.66 परसेंट पॉइंट कम था और 0 सीट जीतीं

तृणमूल कांग्रेस ने 42 सीटों पर अपने उम्मीदवार दिए और 29 सीटें हासिल कीं यानी 2019 के मुकाबले उन्हें सात सीटों का फायदा हुआ। भारतीय जनता पार्टी ने भी 42 सीटों पर अपने उम्मीदवार दिए और उन्हें सिर्फ 12 सीटें मिलीं यानी सीधे तौर पर छे सीटों का नुकशान हुआ। इंडियन नेशनल कांग्रेस और वाम मोर्चा चुनावी गठबंधन (सेक्युलर डेमोक्रेटिक अलायन्स ) कर 42 सीटों पर अपने उम्मीदवार दिए लेकिन सिर्फ कांग्रेस एक ही सीट जीत पायी और उनके प्रदेश कांग्रेस प्रेसिडेंट अधीर रंजन चौधरी अपना गढ़ भी नहीं बचा पाये और वाम मोर्चा तो अपना खाता तक खोलने में नाकामयाब रही। अगर इस लोकसभा चुनाव परिणाम को पश्चिम बंगाल विधान सभा चुनाव के सन्दर्भ में देखें तो तृणमूल कांग्रेस को 2019 लोकसभा चुनाव में 154 विधान सभा सीटों पर बढ़ोतरी  मिली थी पर 2021 के विधान सभा चुनाव में वह 215 सीटों पर अपना जीत दर्ज करने में कामयाब रही लेकिन इस लोकसभा चुनाव में वह 193 विधान सभा सीटों पर अपना बढ़ोतरी  दर्ज करवा पायी यानी  2021 विधान सभा परिणाम के मुकाबले 22 विधान सभा सीटों का नुकसान हुआ। भारतीय जनता पार्टी  ने 2019 लोकसभा चुनाव में 126  विधान सभा सीटों पर बढ़ोतरी मिली थी पर 2021 के विधान सभा चुनाव में वह सिर्फ 77 सीटों पर  सिमट कर रह गयी। लेकिन इस लोकसभा चुनाव में वह 90 विधान सभा सीटों पर अपना बढ़ोतरी दर्ज करवाने में कामयाब रही यानी 2021 विधान सभा के मुकाबले 13 विधान सभा सीटों का इजाफा हुआ। इंडियन नेशनल कांग्रेस को 2019 लोकसभा चुनाव में 14 विधान सभा सीटों पर बढ़ोतरी मिली थी लेकिन 2021 विधान सभा चुनाव में अपना खाता तक खोलने में नाकामयाब रही लेकिन इस लोकसभा चुनाव में वह 10 विधान सभा सीटों पर अपना बढ़ोतरी दर्ज करवाने में कामयाब रही। लेकिन वाम मोर्चा 2019 लोकसभा और 2021 विधान सभा में शून्य से आगे बढ़ ही नहीं पाया लेकिन इस लोकसभा चुनाव में सांत्वना के तौर एक विधान सभा सीट पर बढ़ोतरी हासिल कर पायी।

                         पश्चिम बंगाल के राजनीतिक परिदृश्य में परिवर्तनों को विपक्ष सही दिशा में समझने में नाकाम रहा ?

पिछले कुछ वर्षों में पश्चिम बंगाल के राजनीतिक परिदृश्य में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं, जिसके कारण वाम मोर्चा और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का प्रभाव बहुत हद तक कम हुआ है। इस बदलाव में कई कारकों का योगदान रहा है। ऐतिहासिक रूप से, वाम मोर्चा, विशेष रूप से सीपीआई(एम) ने पश्चिम बंगाल में तीन दशकों से अधिक समय तक राज्य पर शासन किया। हालांकि, कथित शासन संबंधी मुद्दों और लोगों की बदलती सामाजिक-आर्थिक आकांक्षाओं के साथ तालमेल बिठाने में असमर्थता के कारण उनका समर्थन आधार पूरी तरह कम हो गया है । भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ वाम मोर्चे के गठबंधन को तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के उदय का मुकाबला करने के लिए एक रणनीतिक कदम के रूप में देखा गया था, लेकिन इससे अपेक्षित परिणाम नहीं मिले। कुछ लोगों ने इस गठबंधन को वामपंथियों के वैचारिक रुख को कमजोर करने वाला माना, जिसके कारण इसके मूल समर्थकों के बीच विश्वसनीयता में कमी आई। इसके अलावा, राज्य में एक महत्वपूर्ण राजनीतिक ताकत के रूप में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के उभरने से गतिशीलता बदल गई है, जिसमें भाजपा ने वामपंथियों के पारंपरिक वोट बैंक के एक हिस्से को सफलतापूर्वक आकर्षित किया है। भारतीय धर्मनिरपेक्ष मोर्चा (ISF) जैसी नई पार्टियों के साथ गठबंधन करने के वामपंथियों के फैसले को भी उनके पारंपरिक धर्मनिरपेक्ष रुख से अलग माना गया, जिससे उनके समर्थकों में और अलगाव पैदा हुआ। दूसरी ओर, कांग्रेस पार्टी मजबूत क्षेत्रीय दलों और राष्ट्रीय नेतृत्व संकट के सामने अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रही है। हाल के चुनावों में राज्य में इसका प्रदर्शन निराशाजनक रहा है, वोट शेयर में उल्लेखनीय गिरावट आई है, जो राज्य की राजनीति में पार्टी के घटते प्रभाव को दर्शाता है। टीएमसी की कल्याणकारी योजनाओं और एक मजबूत संगठनात्मक ढांचे के साथ मतदाताओं की कल्पना को पकड़ने की इसकी क्षमता ने भी वामपंथियों और कांग्रेस के घटते राजनीतिक स्थान में भूमिका निभाई है। जमीनी स्तर की राजनीति पर टीएमसी का ध्यान और क्षेत्रीय गौरव की इसकी कहानी ने कई मतदाताओं को प्रभावित किया है, जिससे पारंपरिक दल और भी हाशिए पर चले गए हैं। संक्षेप में, पश्चिम बंगाल में वाम मोर्चा और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की घटती राजनीतिक जगह को रणनीतिक गलतियों, वैचारिक कमजोरियों, भाजपा के उदय और टीएमसी के प्रभावी शासन और राजनीतिक आख्यान के संयोजन के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। इन कारकों ने सामूहिक रूप से राज्य के बदलते राजनीतिक स्वरूप में योगदान दिया है।

निष्कर्ष:  प्रजातंत्र में एक सशक्त विपक्ष का होना बहुत ही जरूरी है। रचनात्मक और मजबूत विपक्ष दर्पण की तरह काम करता है जो सत्ताधारी पक्ष को सही दिशा दिखा सकता है और राज्य के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। विचारों की विविधता राजनीति और समाज को समृद्ध बनाती है। राजनीतिक विरोध को शत्रुता में नहीं बदलना चाहिए, जिसे हम इन दिनों दुखद रूप से देख रहे हैं। ये स्वस्थ लोकतंत्र के लक्षण नहीं हैं। “संसदीय लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए विपक्ष को भी मजबूत करने की आवश्यकता है। प्रजातंत्र में जितने विपक्षी दल मजबूत होंगें उतनी सत्ताधारी दल की कार्यशैली में सुधार आयेगा। एक बहुत ही प्रासंगिक कहावत है ” सत्ता भ्रष्ट करती है और पूर्ण सत्ता पूरी तरह भ्रष्ट करती है” इसीलिए एक स्वस्थ्य प्रजातंत्र में सत्ता का संतुलन होना बहुत ही जरूरी है।    लेकिन दुर्भाग्य से हमारे राज्य में इंडियन नेशनल कांग्रेस और वामपंथियों का लगातार गिरता जनाधार और निर्वाचन में बहुत ही ख़राब प्रदर्शन शायद कहीं न कहीं  एक सही और सशक्त विपक्ष की जगह बहुत हद तक कम होती नज़र आ रही है  ??

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Nanda Dulal Bhatttacharyya

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पेशे से पत्रकार, निष्पक्ष, सच्ची और ज़मीन से जुड़ी रिपोर्टिंग का जुनून

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