नन्द दुलाल भट्टाचार्य, हक़ीकत न्यूज़, समस्तीपुर , बिहार : देश के स्वतंत्रता संग्राम में चंपारण आंदोलन और १९४२ (1942) का भारत छोड़ो आंदोलन के माध्यम से अहम और अग्रगणी भूमिका निभाने वाला और देश को प्रथम राष्ट्रपति देने वाला राज्य बिहार ,स्वतंत्रता के सात दशकों के बाद भी आज देश के पिछड़े और गरीब राज्य में गिना जा रहा है पर क्यों? विकास के ज्यादातर मानकों पर बिहार देश के अन्य राज्यों से कहीं अधिक पिछड़ा हुआ है। नीति आयोग से उपलब्ध आकड़ों के अनुसार इसकी जनसंख्या का ५१.९१ % (51.91%) जो बहुआयामी रूप से गरीब हैं। कितनी सरकारें आयीं और कितनी सरकारें चली गयी फिर भी राज्य की स्थिति सुधर नहीं रही है। आज भी गरीबी,अशिक्षा, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार जैसी समस्याओं से बिहार निरंतर झूझ रहा है। इस परिस्तिथि में प्रशांत किशोर की जन सुराज एक नये दिशा की आगास करता नज़र आ रहा है। अब तक जन सुराज पदयात्रा ने नौ महीने के समयकाल में लगभग ३००० ( 3000) गांव कवर कर चुकी है और इस अभियान के माध्यम से एक बड़ी आबादी तक अपना उद्देश्य पहुंचाने और जुड़ने में कामयाब रही है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है की प्रशांत किशोर ( जन सुराज) ने आम जनमानस से संवाद करते वक़्त जातिवाद और राजनितिक समीकरणों को पूरी तरह से नज़रअंदाज़ करते हुये बेरोजगारी,गरीबी,अशिक्षा, स्वास्थ्य, आर्थिक विकास, कृषि, उद्योग जैसे बुनियादी मुद्दों पर ही अपना नजरिया रखा है और शब्दों की कारीगरी और भाषण देने तक अपने को सिमित नहीं रखा है बल्कि आम इंसान से जुड़ी समस्यायों की जमीनी हक़ीकत को समझने ,परख़ने और वस्तुनिष्ठ रूप से उनके समाधानों को एक सही अंजाम देने की भी सोच जाहिर की है और इसी उदेश्य को मद्दे नज़र रखते हुये आने वाले कल में इन बुनियादी मुद्दों की समस्यायों पर एक विज़न डॉक्यूमेंट ( vision document ) का एक वास्तविक खाखा भी तैयार किया है।
“ अब समय है स्थिति को बदलने का और लोगों के जीवन में बेहतरी के लिए, बिहार की व्यवस्था में आमूल–चूल परिवर्तन का इस संकल्प के साथ और आने वाले १० (10) सालों में बिहार को देश के शीर्ष १० (10) राज्यों की श्रेणी में शामिल कराने के लिए जन सुराज का यह अभियान समाज के सही लोगों को जोड़कर, एक सही सोच के साथ सामूहिक प्रयास के जरिए एक ऐसी व्यवस्था बनाने की कोशिश है, जिससे सत्ता परिवर्तन सही मायनों में व्यवस्था परिवर्तन का जरिया बने” – प्रशांत किशोर ।
इतिहास गवाह है की किसी भी देश या राज्य की राजनितिक आधारभूत संरचना में जन जागरण ही राजनतिक दलों की आधारशिला रही है। आने वाले दिनों में जन सुराज जन जागरण की मुहीम की सोच पर अगर एक राजनितिक दल के रूप में आगास करती है तो शायद बिहार एक नये उद्देश्यपूर्ण, समयबद्ध, प्रभावी तरीके से राज्य की राजनितिक और सामाजिक कायाकल्प हो सकती है जो आम जनमानस को एक बेहतर कल दे सकता है। जमीनी तौर पर जिस तरह से प्रशांत किशोर पदयात्रा के माध्यम से आम जनमानस में अपना पदचिन्ह और छवि सुदृह कर रहें हैं और अगर इस जन सुराज के सोच के साथ आने वाले २०२४ (2024) के लोकसभा चुनाव में उतरते हैं तो बिहार का राजनितिक समीकरण पूरी तरह बदल जाने के आसार साफ नज़र आ रहें हैं। इसमें भी कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी अगर कई राजनीतिक दिग्गजों को शायद मुँह की खानी पड़े क्योंकि प्रजातंत्र में राजनितिक दल या नेता नहीं बदलाव आखिरकार आम इंसान ही लाता है। अब देखना यह है की आने वाले कल में बिहार के भाग्य विधाता ( आम जन मानस) किसको चुनते हैं।
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