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कोई विकल्प नहीं भीषण गर्मी के बीच जारी है रोजी रोटी का संघर्ष कमाएंगे नहीं तो खाएंगे क्या ?

नन्द दुलाल भट्टाचार्य, हकीकत न्यूज़, उत्तर चौबीस परगना :  मौसम चाहे कोई भी हो भीषण गर्मी, बारिश या कड़ाके की ठंड एक मजदूर ही है जो हर वक्त मेहनत करने को तैयार रहता है। भीषण गर्मी के बीच काम कर रहे श्रमिकों से उनके मन की बात जानने का थोड़ा प्रयास किया। दोपहर २: ०० (2 :00)  बजे का वक़्त और तापमान अपने पुरे शिखर पर था। कलकत्ता से थोड़ी दुरी पर पत्थर ढोने का काम करते हुए कुछ मजदूर नजर आए। जो भीषण गर्मी में पत्थर ढ़ोने का काम कर रहे थे। जिस तेज धूप में आम लोग खड़े भी नहीं हो सकते उस भीषण गर्मी के बीच यह सब बहुत मुस्तैदी से पत्थर ढोने का काम कर रहे थे।धूल से लथपथ उनके चेहरे से पसीने के साथ-साथ थकान और बेबसी भी टपक रही थी लेकिन, उनकी हिम्मत का जवाब नहीं वह काम नहीं रोक रहे थे। इतनी गर्मी भी उनकी हिम्मत को नहीं पिघला पा रही थी पर उनके शरीर की सीमाएं हैं.भीषण गर्मी के बीच काम कर रहे इन मजदूरों से जब पूछा गया तो इनका जवाब था कि घर परिवार को पालने के लिए मौसम नहीं देखा जाता। यदि काम नहीं करेंगे तो बच्चों को खिलाएंगे क्या। गर्मी की लहर ने मानव स्वास्थ्य के लिए गंभीर चुनौतियां पेश की हैं और सार्वजनिक स्वास्थ्य आपात स्थिति पैदा की है। लंबे समय तक गर्मी के संपर्क में रहने से हीट स्ट्रोक और हीट थकावट होती है और विभिन्न श्वसन और हृदय रोग होते हैं। इसके अलावा, कड़ी गर्मी की लगातार घटना भी अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है। कार्य दिवसों के नुकसान के कारण गरीब और दिहाड़ी मजदूरों  की आजीविका पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। गर्मी की लहरें दिहाड़ी मजदूरों के अलावा छोटे रेहड़ी-पटरी वालों, ईंट बनाने वाले श्रमिकों, निर्माण श्रमिकों और रिक्शा चालकों के जीवन पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालती है और इन श्रमिकों की उत्पादकता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और इससे हमारे देश  की समग्र अर्थव्यवस्था बहुत हद तक प्रभावित होती है। लंबे समय तक चलने वाली गर्मी की लहरें सिर्फ श्रमिकों पर ही नहीं बल्कि कृषि उत्पादकता पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालती है और पशुधन क्षेत्र को भी बहुत ही गंभीर तरीके से प्रभावित करती हैं क्योंकि जानवर गर्मी की लहरों के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। वैश्विक जलवायु जोखिम सूचकांक 2021( global climate risk index 2021)  जलवायु से संबंधित आपदाओं के बढ़ते खतरे की याद दिलाता है। इसके अलावा, हाल के दिनों में, जलवायु परिवर्तन के कारण गर्मी की लहरों की आवृत्ति और तीव्रता में वृद्धि हुई है। हमारा देश आमतौर पर गर्मी के महीनों के दौरान गर्मी की लहरों का अनुभव करता है, खासकर देश के उत्तरी और मध्य भागों में। इस साल भी, भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने मार्च से मई २०२३ (2023) तक अत्यधिक गर्मी की स्थिति का अनुमान लगाया है। बढ़ता तापमान देश की जीडीपी के लिए एक बड़ा जोखिम है क्योंकि इससे उत्पादकता और काम के घंटों में भारी कमी आ सकती है। भीषण गर्मी के प्रकोप के कारण  कृषि और निर्माण क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित होने की संभावना है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) २०१९ (2019) की रिपोर्ट के अनुसार हमारे देश ने  १९९५ (1995) से अत्यधिक गर्मी के तनाव के कारण अच्छी खासी श्रम घंटे खो दिये हैं और रिपोर्ट यह भी बताती है कि आने वाले कल में लगभग ९.०४% ( 9.04%) काम के घंटे कम होने की उम्मीद है। इस बढ़ती हुई गर्मी के तनाव के कारण कृषि और निर्माण दोनों क्षेत्रों में सबसे ज्यादा नुकसान होने की आकांशा है और इन क्षेत्रों से जुड़े श्रमिक गंभीर रूप से प्रभावित होंगे क्योंकि हमारे देश की एक बड़ी आबादी अपनी आजीविका के लिए इन क्षेत्रों पर निर्भर करती है। इस भीषण गर्मी में काम कर रहे दिहाड़ी मजदूरों  की स्थिति को देखकर सरकार की योजनाओं और समस्त श्रमिक संगठनों द्वारा किया जा रहा संघर्ष पर्याप्त नहीं लगता। शायद कुछ और ठोस कदम उठाने की आवश्यकता और सही दिशा में प्रयास की सख्त जरुरत है।

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Nanda Dulal Bhatttacharyya

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पेशे से पत्रकार, निष्पक्ष, सच्ची और ज़मीन से जुड़ी रिपोर्टिंग का जुनून

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