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प्रजातंत्र में सबसे बड़ा पद एक नागरिक का होता हैं,और अभिव्यक्ति की आजादी सभी अधिकारों की जननी है

नन्द दुलाल भट्टाचार्य, हक़ीकत न्यूज़, कलकत्ता : इस साल २६ (26) जनवरी को  देशभर में ७४ (74) वां गणतंत्र दिवस मनाया जाएगा। २६ ( 26) जनवरी १९५० (1950) को देश का संविधान लागू किया गया था और हमारा देश एक लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में स्थापित हुआ था। भारतीय संविधान दुनिया का सबसे लंबा लिखित राष्ट्रीय संविधान है। उस दस्तावेज़ का जश्न मनाया जाता है जिसने देश की नींव रखी।यह एक प्रकार प्रजातंत्र का महापर्व भी है और हमारा गणतंत्र दिवस प्रजातंत्र के महत्व को भी याद करता है। मानव जाती के राजनितिक इतिहास में जो विभिन्न प्रकार की शासन वयवस्थाएँ रहीं हैं उनमे प्रजातंत्र को विश्व की सबसे स्वीकृत शासन प्रणाली के रूप में माना जाता है। इसका मुख्य कारण यह भी है की राष्ट्र की सम्पूर्ण शक्ति की स्वामी आम जनता होती है कोई व्यक्ति, समूह या कोई विशिष्ट वंश नहीं। अतः जनता जनार्दन की भागीदारी प्रजातंत्र का मूल आधार है। प्रजातंत्र का अर्थ एक ऐसी शासन प्रणाली से है जिसमे जनहित सर्वोपरि है। प्रजातंत्र का अर्थ केवल एक शासन प्रणाली ही नहीं बल्कि एक राष्ट्र और समाज का रूप भी है। समाज के रूप में प्रजातंत्र एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था है जिसमे व्यक्ति साध्य है और व्यक्तित्व का विकाश इसका लक्ष्य है। एक वाक्य में प्रजातंत्र का वर्णन जनता का,जनता के लिए और जनता द्वारा शासन, इसीलिए चुनावी परिणामों को जनादेश कहा जाता है की जन ने किसी एक राजनितिक दल को अपने मतदान द्वारा यह आदेश दिया की आप जन के नुमाईंदे की हैसियत से पांच सालों तक शासन भार संभालें। किसी भी प्रजातंत्र में चुनाव उसका अभिन्न अंग होता है पर दुर्भाग्यवश हमारे देश की राजनितिक प्रक्रिया में राजनितिक दल चुनाव से पहले वादे तो बहुत सारे कर देतें हैं पर सत्ता में आने के बाद उन्ही वादों की अनदेखी कर देते हैं। अगर हम पिछले ७० (70) सालों के इतिहास को देखें तो कागजी तौर पर हमारे देश के लोकतंत्र का उद्देश्य शायद आम इंसान की समृद्धि रहा होगा पर वह बहुमत में कहीं नज़र नहीं आता। समाज का एक धनी वर्ग ही समृद्धशाली होता नज़र आता है। अधिकांश आम इंसान आज भी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए जद्दोजहद करते नज़र आ रहे हैं। आम इंसान के विकास के लिए नीतियाँ तो बहुत सारी  बनायीं गयीं हैं पर वास्तव में इन नीतियों का न्यायसंगत तरीके से कार्यान्वयन नहीं किया जा रहा है यही कारण है कि लक्षित हितग्राहियों तक लाभ नहीं पहुंच पा रहा है।जिसके चलते मानव विकास सूचकांक में हम आगे नहीं बढ़ पा रहें हैं।हमारे देश के हुक्मरानों की बड़ी मूल समस्या यह है कि नीति निर्माताओं और नीति लागू करने वालों के बीच अंतर की एक बड़ी खाई है।अगर हम बुनियादी मुद्दों शिक्षा,स्वास्थ्य, बेरोजगारी, कृषि, कुपोषण, भुखमरी को जरा सूक्ष्म तरीके से देखें तो कुछ सतही तौर पर काम तो हुए हैं पर दुर्भाग्यवश किसी भी राजनितिक दल ने इन मुद्दों पर समयबद्ध और परिणाम उन्मुख रूप से काम नहीं किया है। अगर हम शिक्षा को ही देख लें शिक्षा की गुणवत्ता की कमी के कारण लाखों युवा बेरोजगार हैं। एक सम्मानयुक्त जीविका कमाने के लिए उनका कौशल पर्याप्त नहीं है। इसके बहुकारक हैं पर मोटे तौर पर शिक्षा एवं प्रशिक्षण के लिए उपलब्ध समस्त संसाधनों का सही दिशा में उपयोग न होना एक मुख्य कारण है । सही सार्वजनिक निवेश और मैक्रो इकॉनॉमिक नीति की सठिक दिशा में बढ़ोतरी बहुत जरूरत है। सिर्फ सकल घरेलू उत्पाद(GDP) में वृद्धि आर्थिक विकास को मापने का सही पैमाना नहीं है बल्कि सही अर्थों में रोजगार रहित आर्थिक विकास के बजाय अगर नये कर्म संस्थान सृजित होते हैं तो यह हमारे युवाओं की बहुत मदद करेंगें और यही सही मायने में आर्थिक विकास भी होगा। सरकार स्वयं प्रत्यक्ष रूप से रोजगारों का सृजन नहीं कर सकती। परन्तु वह उसके अनुकूल स्थितियां तैयार कर सकती है।प्रजातंत्र विचारों की परिपक्वता और निष्पक्षता के लिए कार्य करता है। सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास ही सही मायने में एक स्वस्थ और जीवंत लोकतंत्र का प्रतीक है।

 आप सभी को गणतंत्र दिवस के इस महापर्व पर हक़ीकत न्यूज़ की तरफ से हार्दिक शुभकामनायें