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“एक राष्ट्र एक चुनाव की सोच” पक्ष और विपक्ष के तर्कों का नजरिया?

नन्द दुलाल भट्टाचार्य, हकीकत न्यूज़ :  अगर हम देश के  चुनावों की प्रक्रिया को ध्यान से देखें तो उपलब्ध आकड़ों के अनुसार पहला आम चुनाव लोक सभा और सभी राज्य विधानसभाओं का १९५१ -५२ (1951-52) में एक साथ आयोजित किए गए थे। यह प्रथा वर्ष  १९५७ (1957), १९६२ (1962) और १९६७ (1967) में हुए तीन बाद के आम चुनावों में भी जारी रही। हालाँकि १९६८ (1968) और १९६९ (1969) में कुछ विधान सभाओं के समय से पहले भंग होने के कारण यह इस प्रथा में रुकावट आ गयी। लोकसभा और विभिन्न राज्य की  विधानसभाओं के समय से पहले विघटन और कार्यकाल के विस्तार के परिणामस्वरूप लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के लिए अलग-अलग चुनाव हुए हैं और एक साथ लोकसभा और विधानसभाओं चुनावों का चक्र बाधित हो गया। २ (2) सितंबर को सरकार की तरफ  से यह घोषणा की गयी थी की  ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ की संभावना की जांच के लिए आठ संसदीय समिति का गठन किया गया है। पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द को समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। उम्मीद है कि समिति तुरंत काम करना शुरू कर देगी और अपनी सिफारिशें “जल्द से जल्द” प्रस्तुत करेगी। संसदीय समिति की रिपोर्ट आने के बाद ही सरकार आधिकारिक तौर पर इस विषय पर अपना नजरिया रखेगी। चलिए थोड़ा ” एक राष्ट्र एक चुनाव” के पक्ष और विपक्ष में खड़े हो रहे तर्कों को समझने की कोशिश करते हैं –

 ” एक राष्ट्र एक चुनाव” के पक्ष में जो तर्क खड़े हो रहें हैं:

चुनावों की अगणनीय आर्थिक लागत : उपलब्ध आकड़ों ( २०१५- 2015) के अनुसार एक छोटे राज्य के निर्वाचन में भी प्रत्यक्ष वित्तीय लागत लगभग ३०० (300) करोड़ रुपये हुये हैं अगर हाल की बात करें तो वित्तीय लागत में कई गुणा की बढ़ोतरी हो गयी है । हालाँकि इसके अलावा अन्य वित्तीय लागतें और अगणनीय आर्थिक लागतें भी हैं। प्रत्येक चुनाव का मतलब है कि पूरा सरकारी तंत्र चुनावी ड्यूटी और संबंधित कार्यों के कारण अपने नियमित कर्तव्यों से चूक जाती है। अगर हम उपयोग किए गए लाखों मानव-घंटे की लागत को पकड़ें तो यह चुनावी बजट का वित्तीय मूल्यांकन कई गुना बढ़ जायेगा। बार- बार चुनावी प्रक्रियाएँ सरकारी खजाने पर अत्यधिक वित्तीय बोझ डालती हैं । विधानसभा चुनाव का खर्च राज्य सरकार  वहन करती है और लोकसभा चुनाव का खर्च केंद्र सरकार द्वारा वहन किया जाता है।

नीतिगत पंगुता ( policy paralysis): आदर्श आचार संहिता (model code of conduct ) सरकार के कामकाज को भी प्रभावित करती है, क्योंकि चुनाव की घोषणा के बाद किसी भी नई महत्वपूर्ण नीति की घोषणा और कार्यान्वयन नहीं किया जा सकता है।

प्रशासनिक वित्तीय लागत: सुरक्षा बलों को तैनात करने और उन्हें बार-बार लाने-ले जाने की भी  एक बड़ी  प्रशासनिक और  वित्तीय लागत होती है।

                                    ” एक राष्ट्र एक चुनाव” के विपक्ष में जो तर्क खड़े हो रहें हैं:

संघीय समस्या ( Federal Problem ):  देश भर में एक साथ चुनाव लागू करना लगभग असंभव है, क्योंकि इसका मतलब होगा कि देश के बाकी हिस्सों के लिए उनकी चुनाव तिथियों को नियत तारीख के अनुरूप लाने के लिए मौजूदा विधानसभाओं के कार्यकाल में मनमाने ढंग से कटौती या विस्तार करना होगा। ऐसी प्रक्रिया लोकतान्त्रिक ढांचे और संघीय संरचना को कमजोर करेगा।

लोकतंत्र की भावना के विरुद्ध: आलोचकों का यह भी कहना है कि एक साथ चुनावों की प्रक्रिया को लागू करने पर मजबूर करना लोकतंत्र की भावना के विरुद्ध होगा। चुनाव की प्राकृतिक लय को बिगाड़ना और कृत्रिम चक्र थोपना किसी न किसी तरह मतदाताओं के पसंद और विकल्प को सीमित करेगा ।

क्षेत्रीय दलों को नुकसान होने की संभावना : राजनीतिक  विश्लेषकों की मान्यता के अनुसार  “एक देश एक चुनाव” की प्रक्रिया से  क्षेत्रीय दलों को नुकसान होने की संभावना है क्योंकि एक साथ होने वाले चुनावों में मतदाताओं द्वारा कथित तौर पर मुख्य रूप से एकतरफा मतदान करने की संभावना होती है, जिससे  राष्ट्रीय स्तर पर मुख्य धारा की राष्ट्रीय राजनीतिक दलों को ज्यादा फायदा मिलने के आसार हैं ।                                                                                                    उपसंहार :

“एक राष्ट्र एक चुनाव” की अवधारणा भारत के लोकतांत्रिक ढांचे में कई कानूनी पहलू और निहितार्थ  (implications) रखती है। सबसे पहले एक राष्ट्र एक चुनाव के कानूनी पहलुओं के लिए महत्वपूर्ण संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता है। एक साथ चुनाव की अनुमति देने के लिए इन शर्तों को संरेखित करने के लिए सावधानीपूर्वक कानूनी जांच और संभावित परिवर्तनों की आवश्यकता होती है। दूसरे, संघवाद का सिद्धांत एक महत्वपूर्ण कानूनी विचार है। हमारे देश में राज्यों की राजनीतिक गतिशीलता और चिंताएँ अलग-अलग हैं और चुनावों को एक साथ कराने के किसी भी कदम को उनकी स्वायत्तता और विविध हितों का भी ध्यान रखने की जरूरत है। यह स्पष्ट है कि “एक राष्ट्र एक चुनाव” लागू करने के लिए संविधान और अन्य कानूनों में संशोधन की आवश्यकता होगी। हालाँकि, इसे इस तरह से किया जाना चाहिए कि यह लोकतंत्र और संघवाद के बुनियादी सिद्धांतों को नुकसान न पहुँचाए।

बिधिवत सतर्कीकरण एवं डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस समाचार में दिया गया  वक़्तवय और टिप्पणी एक निरपेक्ष न्यूज़ पोर्टल की हैसियत से उपलब्ध  तथ्यों और समीक्षा के आधार पर दिया गया है।  “एक राष्ट्र एक चुनाव” को लेकर संसदीय समिति बनायीं गयी है और संसदीय समिति की रिपोर्ट आने के बाद ही सरकार आधिकारिक तौर पर इस विषय पर अपना नजरिया रखेगी। वर्तमान में  “एक राष्ट्र एक चुनाव” संसदीय समिति के तहत एक विचाराधीन प्रक्रिया है। हमारा उदेश्य किसी भी संगठन/ प्रतिष्ठान/ या राजनितिक दल की कार्यशैली पर इच्छानुरूप टिप्पणी या किसी व्यक्ति या समूह पर अपने विचार थोपना नहीं है। (हकीक़त न्यूज़ www.haqiquatnews.com)  अपने सामाजिक जिम्मेदारी के प्रति पूरी तरह से जागरूक न्यूज़ पोर्टल है।

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Nanda Dulal Bhatttacharyya

Nanda Dulal Bhatttacharyya

पेशे से पत्रकार, निष्पक्ष, सच्ची और ज़मीन से जुड़ी रिपोर्टिंग का जुनून

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