मोहम्मद साजिद ,आज़ाद आलम, हक़ीकत न्यूज़, कलकत्ता : चमड़ा उद्योग भारत की अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार हमारा देश विश्व में जूते और चमड़े के कपड़ों का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। चमड़ा उद्योग देश के शीर्ष दस विदेशी मुद्रा अर्जक में से एक है। चमड़े के उत्पादों का सबसे प्रमुख बाजार यूएसए (USA ),यूके (UK ), जर्मनी, इटली, हांगकांग, संयुक्त अरब अमीरात, स्पेन, फ्रांस, नीदरलैंड, चीन, वियतनाम और बेल्जियम हैं। यह १२ (12) देश एक साथ भारत के कुल चमड़े और चमड़े के उत्पादों के निर्यात का लगभग ७५ % ( 75%) हिस्सा हैं। चमड़ा उद्योग अत्यधिक श्रम प्रधान है और भारत में लगभग ३० (30) लाख से अधिक लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार प्रदान करता है। १९६० (1960) के दशक के अंत में भारत सरकार ने लघु-स्तरीय क्षेत्र को बढ़ावा देना शुरू किया। इस लघु उद्योग आरक्षण नीति ने चमड़ा उद्योग में महत्वपूर्ण योगदान दिया और छोटी कंपनियां कुल उत्पादन का लगभग ९०( 90) प्रतिशत योगदान करती हैं। भारत में टेनरियों में से ७५ (75) प्रतिशत लघु-स्तरीय इकाइयाँ हैं, २० (20) प्रतिशत मध्यम आकार की और ५ (5) प्रतिशत बड़े पैमाने की इकाइयाँ हैं। इक्कीसवीं सदी के शुरुआती दौर में, सरकार ने चमड़ा उद्योग के आधुनिकीकरण के लिए एक बड़ी पंचवर्षीय योजना प्रायोजित की थी। निर्यात क्षेत्र की वृद्धि और भारत सरकार के नीतिगत प्रोत्साहन के साथ, शहरी निर्यात समूहों का विकास हुआ। जबकि बड़े पैमाने पर निर्यात केंद्रों के विकास के माध्यम से चमड़ा उद्योग में अधिक रोजगार सृजित हुए लेकिन सृजित रोजगार की प्रकृति और गुणवत्ता पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। कोलकाता देश का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण टेनिंग सेंटर है। लगभग एक चौथाई भारत की टैनिंग कोलकाता में की जाती है। इसके अलावा, यह चमड़े के सामान और सहायक उपकरण का उत्पादन करता है, जैसे दस्ताने, पर्स और बेल्ट के रूप में। इसमें लगभग ५०० (500) चर्मशोधन कारखाने, १५०० (1,500) चमड़े के सामान निर्माण की इकाइयाँ हैं।और अनुमानित ८५०० (8,500) टेनरियों में श्रमिक कार्यरत हैं। एक अनुमान के अनुसार लगभग ३८००० (38,000) चमड़े की वस्तुओं के उत्पादन जिसमे औद्योगिक दस्ताने निर्माण इकाइयाँ और ४००० (4,000) जूते बनाने के कारखाने भी शामिल हैं । चमड़े की आपूर्ति श्रृंखला में काम जोखिम भरा और खतरनाक है,क्योंकि इसमें बहुद ज्यादा रसायनों के साथ काम किया जाता है। यहां काम करने वाले ज्यादातर लोगों के स्वास्थ्य पर जहरीले रसायनों का बड़ा नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। चमड़ा उद्योग चर्मशोधन मजदूर अक्सर बुखार, आंखों में सूजन, त्वचा रोग और यहां तक की फेफड़ों के कैंसर से भी पीड़ित होते हैं। चर्मशोधन कारखाने नियमित रूप से आवश्यक स्वास्थ्य और सुरक्षा दिशानिर्देशों की अनदेखी करते हैं। इसके अलावा, चमड़े के उत्पादन का अर्ध ठोस अपशिष्ट ज़हरीली गैसों को फैलाता है। आम तौर पर, इन श्रमिकों को इनसे निपटने के लिये पर्याप्त रूप से संरक्षित और प्रशिक्षित नहीं किया जाता है जिसके चलते वह हर वक़्त इन ज़हरीली गैसों के संपर्क में रहते हैं जो उनके स्वास्थ्य को और ज्यादा खतरे में डाल देता है। कार्यस्थल पर दुर्घटना या काम से संबंधित स्वास्थ्य समस्याओं के मामले में, केवल तत्काल प्राथमिक उपचार की व्यवस्था की जाती है, लेकिन अधिकांश नियोक्ता मज़दूरों को आगे की चिकित्सा उपचार के लिए मुआवजा प्रदान नहीं करते हैं। इसके अलावा,ज्यादातर अनौपचारिक श्रमिक होने के कारण उनके पास नियोगकर्ताओं के साथ किसी भी तरह का अनुबंध नहीं होता है। इन हालातों में उनके पास कर्मचारी राज्य बीमा (ईएसआई) जैसी सुविधा उपलब्ध ना होने के कारण दुर्घटना के बाद ना तो उन्हें कोई चिकित्सा सुविधा और ना कोई मुआवजा मिलता है। कलकत्ता के चमड़ा उद्योग के अधिकांश श्रमिक संविदा ( contractual workers) हैं। इन श्रमिकों का नियोगकर्ताओं के साथ किसी भी तरह का श्रमिक की हैसियत से कोई अनुबंध नहीं होता है। उन्हें कारखाने में एक निश्चित मात्रा में काम दिया जाता है और उन्हें काम की मात्रा के अनुसार भुगतान किया जाता है। इसके अलावा, कुछ चमड़े के सामान और फुटवियर इकाइयाँ तो नए कर्मचारियों को बहुत कम वेतन पर या यहाँ तक कि बिना किसी वेतन के नियुक्त करती हैं की पर्याप्त कुशल होने पर उन्हें काम पर रखने के वादे के साथ । केवल एक छोटा कुल कार्यबल का हिस्सा मासिक वेतन प्राप्त करने वाले स्थायी श्रमिकों से बना है। इस आपूर्ति श्रृंखला में महिला श्रमिक भी शामिल हैं जो अस्थायी या अनुबंध श्रमिकों की तुलना में अधिक लचीलापन और कम लागत वाला अनौपचारिक श्रम प्रदान करते हैं। यह महिला श्रमिक अपने घरों से काम करतीं हैं। यह कई प्रकार के चमड़े के वस्तुओं के उत्पादन का महत्वपूर्ण पर अदृश्य हिस्सा हैं। घर पर काम करने वाली यह महिलाएं अत्यधिक असुरक्षा अनुभव करती हैं, ज्यादातर ये महिला श्रमिक संविदा ( contract basis) के आधार पर काम करती हैं। उन्हें प्रति पीस के आधार पर भुगतान किया जाता है। उनके पास किसी प्रकार की स्वास्थ्य या सामाजिक सुरक्षा उपलब्ध नहीं है। चमड़ा उद्योग के निर्यात क्षेत्र में श्रम का कैजुअलाइजेशन(casualisation) व्यापक रूप से मौजूद है। कैजुअलाइजेशन ( casualisation) को अस्थायी या बिना किसी लिखित अनुबंध के श्रमिकों को काम पर रखने के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। ज्यादातर अस्थायी कर्मचारी या ठेका श्रमिक तीसरे पक्ष के माध्यम ( Third party enrollment) से जो ठेकेदार के रूप में जाने जाते हैं द्वारा नियुक्त किये जाते हैं। स्थायी कर्मचारियों की तुलना में इन अस्थायी कर्मचारियों की काम करने की स्थिति बहुत खराब होती है। उनमें से अधिकांश के पास न्यूनतम वैधानिक और सामाजिक सुरक्षा लाभ नहीं हैं और उन्हें न्यूनतम वेतन से कम भुगतान किया जाता है। सिर्फ निर्यात ही नहीं बल्कि ज्यादातर चमड़ा उद्योग में अधिकांश रोजगार अस्थायी और अनुबंध के आधार पर होता है और नियोगकर्ता वैश्विक बाजार में उतार-चढ़ाव, खरीदारों की मांग और विनिमय दरों के अनुसार श्रमिकों को नियोजित करने और बर्खास्त करते रहते हैं। थोड़ा और बारीकी से देखें तो आपूर्ति श्रृंखला के कुछ हिस्से श्रम कानूनों से बंधे नहीं हैं फ़ैक्टरी अधिनियम, स्वास्थ्य, सुरक्षा, कल्याणकारी सुविधाओं के प्रावधान को परिभाषित करने वाला क़ानून, और फ़ैक्टरियों में नियोजित श्रमिकों के लिए काम के घंटे और वार्षिक छुट्टी की सुरक्षा, दस (१०) से कम श्रमिकों को रोजगार देने वाली और बिजली का उपयोग करने वाली उत्पादन इकाइयों पर लागू नहीं होता है (या यदि बिजली का उपयोग नहीं किया जाता है तो २० (20) से कम कर्मचारी)। तो हकीकत में चमड़ा उत्पादन इकाइयों का एक बड़ा तबका इन कारखाना अधिनियम के तहत पंजीकृत नहीं हैं । अंततः जो इस चमड़ा उद्योग से जुड़े श्रमिकों को गंभीर रूप से प्रभावित करता है। श्रमिकों को न्यूनतम मजदूरी और अन्य सभी वैधानिक लाभों से वंचित करता है।
निष्कर्ष : एक बहुत ही कड़वा सच यह है की चमड़ा उद्योग से जुड़े हुये ज्यादातर मज़दूर संविदात्मक (contractual) शर्तों पर काम करते हैं। कठोर श्रम और लंबे समय तक काम करने के बावजूद न्यूनतम मजदूरी से वंचित हैं। कारखानों में भुगतान की जाने वाली उच्चतम मजदूरी भी असल में सरकारी आंकलन के अनुसार न्यूनतम मजदूरी है। विदेशी मुद्रा अर्जित करने वाला और निर्यातोन्मुख उद्योग होने के बावजूद इस चमड़ा उद्योग से जुड़े श्रमिक न्यूनतम मजदूरी, स्वास्थ्य परिशेवायें और व्यावहारिक रूप से किसी भी तरह के सामाजिक सुरक्षा से वंचित हैं। शायद प्रयत्न तो बहुत हुए किन्तु मजदूरों के मुंह में ठीक से निवाले नहीं पहुंचे। एक श्रम प्रधान उद्योग होने के नाते नीति निर्माताओं को चर्म -उद्योग से जुड़े श्रमिकों की कार्य स्थितियों पर सही दिशा, वस्तुनिष्ठ और समयबद्ध तरीके से विचार करने की बहुत ही आवश्यकता है।
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