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तृणमूल सुप्रीमो ने एक मास्टर स्ट्रोक में कांग्रेस और लेफ्ट फ्रंट को बंगाल राज्य में राजनीतिक रूप से पूरी तरह अप्रासंगिक बना दिया है?

नन्द दुलाल भट्टाचार्य, हक़ीकत न्यूज़ , पश्चिम बंगाल : एक बहुत प्रसिद्ध ऐतिहासिक कहावत है की राजनीति में “कोई स्थायी शत्रु या कोई स्थायी मित्र नहीं होता, केवल स्थायी हित होते हैं”। हाल के राष्ट्रीय राजनैतिक माहौल में शायद यह कहावत बिलकुल सही बैठ रहा है। देश के २६ (26) विपक्षी दलों के एक समूह ने २०२४ (2024) के लोक सभा चुनावों में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA ) से मुकाबला करने के लिए इंडिया नामक एक गठबंधन बनाया है, जो भारतीय राष्ट्रीय विकासात्मक समावेशी गठबंधन का संक्षिप्त रूप है। यह निर्णय १८ (18) जुलाई, २०२३ (2023) को बेंगलुरु में एक सम्मेलन के दौरान इन दलों के नेताओं द्वारा लिया गया था।इस राष्ट्रीय गठबंधन में तृणमूल कांग्रेस की साझेदारी पर कांग्रेस के शिर्ष नेतृत्व सोनिआ गाँधी, राहुल गाँधी, मल्लिकार्जुन खरगे सीपीआई (एम) के सीताराम येचुरी ने सिर्फ मोहर ही नहीं लगायी बल्कि तृणमूल कांग्रेस को एक महतव्पूर्ण घटक के रूप में सराहा भी है। अब प्रश्न यह उठ रहा है की राज्य स्तर पर कांग्रेस और सीपीआई (एम) की तृणमूल कांग्रेस से कुस्ती और राष्ट्रीय स्तर पर दोस्ती आम जन मानस तो दूर की बात राज्य में अपने जमीनी कार्यकर्ताओं को तार्किक रूप से आश्वस्त करना मुश्किल हो जायेगा। हाल ही में हुए पंचायत निर्वाचन को लेकर कांग्रेस और सीपीआई (एम) तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ अधिक मुखर और आक्रामक थे, उन्होंने कहा कि उनके जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं के साथ गंभीर रूप से दुर्व्यवहार और हिंसा किया गया है। २०२१ ( 2021) में हुये राज्य विधान सभा चुनाव में राज्य कांग्रेस, सीपीआई (एम) की अगवाई में लेफ्ट फ्रंट और इंडियन सेक्युलर फ्रंट ( ISF) के गठजोड़ ने तृणमूल कांग्रेस के विरुद्ध जबदरस्त आक्रात्मक मोर्चा खोला था और तृणमूल कांग्रेस सरकार के विरुद्ध में भ्रस्टाचार के मुद्दे पर लगातार आक्रामक अभियान भी छेड़ा था। लेकिन राज्य कांग्रेस और सीपीआई (एम) की बातें अब थोड़ी अप्रासंगिक और बेमानी सी नज़र आ रहीं हैं जब इन दोनों राजनैतिक दलों के शीर्ष केंद्रीय नेतृत्व ने तृणमूल कांग्रेस को राष्ट्रीय स्तर पर अपना साझेदार बना लिया है। और शायद यह कहना गलत नहीं होगा की आने वाले कल में कांग्रेस और सीपीआई (एम) का राज्य में राजनैतिक अस्तित्व ही खतरे में न पर जाये। राजनीति में किसी भी राजनैतिक दल की जमीन जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं द्वारा तैयार की जाती है, यहां तक कि अगर जमीनी स्तर पर काम ठीक से नहीं किया गया तो सर्वश्रेष्ठ नेतृत्व भी कोई सकारात्मक परिणाम नहीं दे सकता है। आज के दौर में जमीनी कार्यकर्ताओं को नज़रअंदाज़ करके लिया गया राजनैतिक फैसला शायद नज़दीकी फायदा तो दे सकता है पर आने वाले कल में बहुत भारी दूर का नुकसान भी दे सकता है?

आने वाले २०२४ (2024) के लोकसभा चुनाव में  बंगाल में ४२(42) सीटों का गठजोड़

प्रजातंत्र में राजनीति सिर्फ आकड़ों और तथाकथित विश्लेषकों के तथ्यों पर निर्भर कर के नहीं होती है एक प्रजातान्त्रिक आधारभूत संरचना आम जन मानस के सोच पर पूरी तरह निर्भर करती है और इसमें सबसे अहम भूमिका एक राजनैतिक दल  की स्वीकार्यता और विश्वसनीयता पर निर्भर करती है और उससे भी महत्वपूर्ण है की राजनैतिक नेतृत्व और जमीनी कार्यकर्त्ता कितने आम जन मानस के सोच के साथ जुड़े हुए हैं। अगर हम इस राष्ट्रीय गठबंधन को राज्य लोकसभा चुनाव के सन्दर्भ में देखें तो इसमें कोई दो राय नहीं है की आने वाले लोकसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस विरोधियों के मुकाबले बहुत कदम आगे चल रहा है और इस राष्ट्रीय गठबंधन की बेंगलुरु की कार्यकारिणी बैठक में राज्य स्तर पर सीट बंटवारे या सीट वितरण पर कोई चर्चा भी नहीं हुई है। अगर हम २०१९ (2019) में हुए ४२( 42) लोकसभा सीटों के चुनाव परिणाम को थोड़ा सूक्ष्म तरीके से देखें तो तृणमूल कांग्रेस – २२ (22) सीट और ४३.३ % ( 43.3%) वोट शेयर के साथ पहले नंबर पर थी। भारतीय जनता पार्टी – १८ (18) सीट और ४०.७ % ( 40.7%) वोट शेयर के साथ दूसरे नंबर पर और इंडियन नेशनल कांग्रेस महज २(2) सीट  और ५. ६७ % ( 5.67%) वोट शेयर के साथ तीसरे नंबर पर मगर सबसे चौकाने वाली बात यह थी की सीपीआई ( एम) की अगवाई में वाम मोर्चा अपना खाता तक खोलने में नाकामयाब रहा हालाँकि उन्हें ६.३३% ( 6.33%) वोट शेयर मिले थे।अगर हम हाल ही में हुये ग्राम पंचायत चुनाव को देखें तो ग्राम पंचायत, पंचायत समिति और ज़िला परिषद में तृणमूल कांग्रेस का चुनावी परिणाम विरोधियों के मुकाबले कई गुना ज्यादा है और आंकड़ें खुद बयान कर रहें हैं की तृणमूल कांग्रेस से विरोधियों का फासला बहुत ज्यादा है।अब प्रश्न यह खड़ा हो रहा है की ग्राम पंचायत और पिछले लोक सभा चुनाव को मद्दे नज़र रखते हुये अगर तृणमूल कांग्रेस अपनी सीटें आने वाले २०२४( 2024) के लोकसभा चुनाव में  कांग्रेस और सीपीआई (एम) से साँझा करती है तो सबसे ज्यादा नुकसान तृणमूल कांग्रेस को होगा और इस उलझन का फायदा कहीं न कहीं भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में जाने की संभावना ज्यादा है। अब देखना यह है की तृणमूल नेतृत्व इस परिस्तिथि को कैसे संभालती है क्योंकि कठोर सत्य यह है कि तृणमूल कांग्रेस को राष्ट्रीय पटल पर अपनी पकड़ बनाये रखने के लिए पश्चिम बंगाल से अधिकतम लोकसभा सीटें प्राप्त करने की आवश्यकता है।

उपसंहार: २०१९ (2019) और २०२३ ( 2023) के लोकसभा चुनाव की परिस्थितियों में बहुद ज्यादा अंतर है। देश की तुलना में बंगाल बहुत अधिक राजनीतिक जागरूक राज्य है और आम लोगों की धारणा भावनात्मक विस्फोटों की तुलना में तर्कसंगतता पर आधारित है। २०१८ (2018) के लोकसभा चुनावों के नतीजे ज्यादातर आम लोगों की प्रतिक्रिया पर आधारित थे जो ग्राम पंचायत चुनावों में अपने वोट नहीं दे सके और इस गुस्से का फायदा बहुत हद तक भारतीय जनता पार्टी को मिला। इस बार विभिन्न ज़िलों में आम लोगों से बातचीत के दौरान जो आम लोगों की सोच उभर कर आयी की बंगाल ने भारतीय जनता पार्टी को १८ (18) सांसद चुन कर दिये लेकिन एक भी पूर्ण मंत्री बंगाल को नहीं मिला और थोड़े बहुत जो भी उपमंत्री बने उनको भी भाजपा की राज्य इकाई ने सही मायनो में इस्तेमाल नहीं किया। शायद यह सोच आने वाले २०२४ ( 2024)  के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के वोट पर बहुत हद तक असर पड़ेगा। ग्राम पंचायत में हिंसा को आम लोगों ने नकारा और निंदा भी की है और इसका खामयाजा तृणमूल कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में भुगतना पर सकता है। लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर तृणमूल कांग्रेस की सांझेदारी ने लोकसभा का पूरा रसायन ही बदल दिया  है और सही अर्थ में इस लोकसभा में तृणमूल कांग्रेस का सीधा टक्कर भारतीय जनता पार्टी से होगा क्योंकि तृणमूल कांग्रेस के सुप्रीमो ने बंगाल की राजनीती में जातीय कांग्रेस और वाम मोर्चा को पूरी तरह से संसदीय और राजनीतिक रूप से अप्रासंगिक बना दिया है। लेकिन इस अप्रासंगिकता का फायदा कितना भारतीय जनता पार्टी ले पायेगी इस पर एक बड़ा प्रश्न चिन्ह जरूर खड़ा हो रहा है क्योंकि बंगाल की राजनितिक जमीनी नबज़ पर उनकी कोई पकड़ नज़र नहीं आती है । और इस जमीनी सांगठनिक कमी को राज्य नेतृत्व अगर नज़रअंदाज़ करती है तो शायद भारतीय जनता पार्टी की बंगाल इकाई को लोकसभा चुनाव में भारी नुकसान का सामना भी करना पर सकता है ? अंततः पूरा फायदा आखिकार तृणमूल कांग्रेस को ही होगा।

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Nanda Dulal Bhatttacharyya

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पेशे से पत्रकार, निष्पक्ष, सच्ची और ज़मीन से जुड़ी रिपोर्टिंग का जुनून

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