नन्द दुलाल भट्टाचार्य, हक़ीकत न्यूज़, मुज़फ़्फ़रपुर : दशकों से कचरा बीनने वाले या ‘रैग-पिकर्स (Rag-Pickers) खतरनाक एवं अस्वच्छ परिस्थितियों में कार्य करते हुए हमारी फेंकी हुई चीज़ों से अपनी आजीविका कमाते रहे हैं। दुर्भाग्य से अधिकांश अनौपचारिक कचरा बीनने वाले तंत्र में अदृश्य बने रहते हैं। हमारे देश में उनकी संख्या कुछ कम नहीं है एक अनुमान के अनुसार उनकी संख्या लगभग १५ (15) लाख से ४० (40) लाख तक है । उनमें बड़ी तादाद में महिलायें और बच्चे भी शामिल हैं और वे किसी सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य बीमा, न्यूनतम मजदूरी या बुनियादी सुरक्षात्मक साधनों के बिना ही कार्यरत हैं। जैसा कि हमारा देश सतत विकास ( sustainable development ) एजेंडा- २०३० (2030) की पूर्ति की ओर बढ़ रहा है, ‘सफाई करने वाले साथियों की दुर्दशा एक महत्त्वपूर्ण विषय है जहाँ उनके समक्ष विद्यमान चुनौतियों को दूर करने के लिये प्रयासों को तेज़ करने की आवश्यकता है। एक अनुमान के अनुसार हमारे देश में हर वर्ष लगभग ६५ ( 65) मिलियन टन कचरा उत्पन्न करता है और यहाँ लगभग ४०(40 ) लाख से अधिक कचरा बीनने वाले कार्यरत हैं। रैग-पिकर्स या ‘सफाई साथियों (जिसमें बड़ी संख्या में महिलाएँ शामिल हैं) का यह बड़ा समुदाय अधिकांश भारतीय शहरों में पारंपरिक कचरा प्रबंधन की रीढ़ रहा है।कचरा बीनने वालों के समावेशन के लिये समय-समय पर कुछ पहल की गई हैं-योजना आयोग द्वारा गठित ‘ठोस अपशिष्ट प्रबंधन पर उच्च-शक्ति समिति की वर्ष १९९५ (1995) की एक रिपोर्ट में कचरा बीनने वालों को एक तंत्र में एकीकृत करने का आह्वान किया गया था। वर्ष १९९८ (1988) में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित एक विशेषज्ञ समूह ने भी यही अनुशंसा की थी। ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम (Solid Waste Management Rules) और प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम (Plastic Waste Management Rules) २०१६ (2016) में भी कचरा बीनने वालों के योगदान को चिह्नित किया गया और स्थानीय निकायों के ठोस अपशिष्ट प्रबंधन में उन्हें शामिल करने का प्रस्ताव किया था।हालाँकि प्रशासन की किसी भी आपदा प्रबंधन योजना में कचरा बीनने वालों को शामिल नहीं किया है।जब सरकार ने कोरोना महामारी के दौरान फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं को समर्थन देने के उपायों की घोषणा की तो ‘रैग-पिकर्स समुदाय को इसके दायरे से बाहर रखा गया। निम्न एवं अनिश्चित आय, सरकारी योजनाओं तक सीमित पहुँच, उच्च स्वास्थ्य जोखिम और गंभीर सामाजिक बहिर्वेशन सहित उनकी विभिन्न भेद्यताएँ या कमज़ोरियाँ कोरोना महामारी के दौरान और बढ़ गईं। रैग-पिकर्स के उत्थान के राह की मूल बाधाएँ आँकड़ों की अनुपलब्धता: वर्ष २०१८ (2018) में यूनाइटेड नेशंस डेवलपमेंट प्रोग्राम (UNDP India) ने अपने प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन कार्यक्रम के माध्यम से सफाई साथियों के साथ कार्य करना शुरू किया था। हालाँकि इस समुदाय के संबंध में आँकड़े की कमी के कारण सफाई साथियों के समर्थन के लिये कार्यक्रमों एवं नीतियों को आकार देने में बाधा उत्पन्न हुई। यद्यपि इसने यूनाइटेड नेशंस डेवलपमेंट प्रोग्राम (UNDP India) को सफाई साथियों की सामाजिक-आर्थिक स्थितियों के बारे में देश के पहले वृहत-स्तरीय विश्लेषण की अभिकल्पना एवं प्रकाशन के लिये प्रेरित किया, जहाँ १४ (14) भारतीय शहरों में ९,००० (9,000) से अधिक रैग-पिकर्स को सर्वेक्षण में आधार बनाया गया था। सर्वेक्षण से जो बात उभर कर आया की कचरा बीनने वालों का लगभग ७०% (70%) सामाजिक रूप से पिछड़े समूहों से संबद्ध रखता है और ज्यादातर के पास कोई औपचारिक शिक्षा नहीं है। हमारे इन सफाई साथियों के आर्थिक और सामाजिक उत्थान के लिए नीति निर्माताओं को सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को और स्पष्ट रूप से रचना और कल्याणकारी ढाँचे का निर्माण करना नीतिगत प्राथमिकता होनी चाहिये।सरकारी कार्यक्रमों से सफाई साथियों को जोड़ने के लिये सरकारी योजनाओं में नामांकन हेतु उन्हें सक्रिय रूप से प्रेरित करने, कागजी कार्रवाई कम करने और अधिकारों एवं हक़ के संबंध में उन्हें जागरूक करने की बहुत ही आवश्यकता है।
उपसंहार: जब हमारा देश सतत् विकास ( sustainable development ) लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये दृढ़ प्रयास कर रहा है, तब इन रैग-पिकर्स के लिए बेहतर वैकल्पिक रोज़गार के प्रयास की खोज करनी चाहिये,जहाँ किसी व्यक्ति के लिये कचरा बीनने जैसे जोखिमपूर्ण और खतरनाक कार्य को अपने हाथों से करने (Manually) रूप से करने की आवश्यकता समाप्त हो जाए। अर्थव्यवस्था में बेहतर, सुरक्षित रोज़गार अवसर सृजित करने की स्पष्ट आवश्यकता है ताकि सफाई साथी जैसे अनौपचारिक श्रमिक अंततः अपने कौशल से उस दिशा में आगे बढ़ सकें।हमारा देश सतत् विकास ( sustainable development) लक्ष्यों को साकार करने की दिशा में दृढ़ प्रयास कर रहा है, लेकिन इस लक्ष्य की प्राप्ति तब तक नहीं होगी जब तक कि हमारे देश में कचरा बीनने वालों की बदतर कार्य परिस्थितियों को संबोधित नहीं किया जाएगा।’
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