नन्द दुलाल भट्टाचार्य, हक़ीकत न्यूज़ , कलकत्ता : वर्तमान मीडिया की स्थिति शायद यह शेर बहुत सही बयान करता है – छप के बिकते थे जो कल तक अख़बार सुना है इन दिनों वह बिक के छपा करते हैं। मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ की हैसियत से जाना जाता है। क्योंकि लोकतंत्र को और सुदृढ़ करने एवं राजनीतिक दलों की जवाबदेही सुनिश्चित करने में मीडिया की भूमिका बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। लेकिन हमारे देश में यह अक्सर सुनने को आता है की मीडिया और राजनितिक दलों में एक गठजोड़ है और इनकी निष्पक्षता पर भी सवाल खड़े हो रहें हैं। यह गठजोड़ सिर्फ हमारी स्वतंत्र बुद्धिमत्ता और सोच में भ्रम ही नहीं पैदा कर रहें हैं बल्कि लोकतंत्र और लोकतान्त्रिक मूल्यों पर भी एक सख्त कुठाराघात कर रहे हैं। अगर हम थोड़ा निष्पक्ष नज़रिये से देखें तो वर्तमान में हमारे देश में अधिकांश मुख्य धारा की मीडिया किसी-न-किसी राजनीतिक दल के मुखपत्र बने नज़र आयेंगे और राजनीतिक दलों का एजेंडा और उद्देश्य प्रचार में व्यस्त हैं। लेकिन मूल सवाल यह है कि राजनीतिक दल मीडिया को प्रभावित करने के लिए इतने उत्सुक क्यों हैं? इस प्रश्न का उत्तर बहुआयामी है हमारा देश एक लोकतान्त्रिक देश है और लोकतंत्र सुनिश्चित करने में राजनीतिक दल सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उपकरण हैं। इस लोकतान्त्रिक प्रक्रिया में सत्ता हासिल करने के लिये आम जन मानस की सोच बहुत महतव्पूर्ण है और इस सोच पर पूर्ण वर्जस्व कायम करने के लिये मीडिया का प्रचार और पूर्वकल्पित तर्क एक बहुत महतव्पूर्ण भूमिका निभाता है। समय के साथ साथ राजनितिक दलों की कार्यशैली,आदर्श और विचारधारा में भी काफी परिवर्तन आया है। चुनावों में मतदाताओं को अपनी और आकर्षित करने के लिये अपनी कार्यशैली, राजनीतिक आदर्शों एवं राजनीतिक विचारधाराओं के माध्यम से एक स्वस्थ राजनीतिक प्रतिस्पर्द्धा से सत्ता प्राप्त करने के बजाय इन राजनीतिक दलों ने सोशल इंजीनियरिंग, मीडिया मैनीपुलेशन का शॉर्टकट रस्ता पकड़ लिया है। और मुख्यधारा के मीडिया इन राजनितिक दलों के समर्थन में मुद्दों को मतदाताओं तक इस तरह से मैनीपुलेट कर अथवा प्रबंधित करके पहुँचाते हैं ताकि राजनीतिक दल के पक्ष में अधिक मतदाताओं को आकर्षित किया जा सके । आम इंसान की मुख्यधारा की पत्रकारिता पर से निरंतर घटती आस्था और विश्वसनीयता सिर्फ पुरे समाज को ही नहीं बल्कि पूरी प्रजातान्त्रिक प्रकिया पर ही सवालिया प्रश्न खड़े कर रहे हैं क्योंकि सही मायने में एक पूर्ण लोकतंत्र उस देश या राज्य की पत्रकारिता की कार्यशैली पर ही आंकलन किया जाता है। अब सवाल उठता है कि मुख्यधारा की मीडिया की इस कार्यशैली का कोई विकल्प है अगर है तो वह क्या है? नब्बे के दशक की शुरुआत में इंटरनेट के उदय के कारण दुनिया की नेटवर्क आबादी में अच्छी ख़ासी वृद्धि हुई है। इस नेटवर्क जानकार आबादी के पास सभी प्रकार की सूचनाओं तक अधिक पहुंच है और आम जनमानस तक पहुंचने की बहुत अधिक क्षमता है । सोशल मीडिया दुनिया भर में नागरिक समाज के लिए जीवन का एक तथ्य बन गया है, जिसमें समाज का हर स्तर – आम नागरिक, राजनितिक दल, क्रीड़ा जगत, सरकारें, राजनेता से अभिनेता तक हर कोई शामिल हैं । दुनिया भर में सोशल मीडिया आम लोगों के लिये सरकार के कामकाज में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करने एवं आवाज उठाने के लिये एक बेहतर प्लेटफार्म बनके उभरा है। इसके जरिये समकालीन मुद्दों पर चर्चा करना, किसी घटना के कारण एवं परिणामों पर चर्चा और नेताओं को जवाबदेह ठहराना आसान हो गया है। लोकतान्त्रिक मूल्य तभी विकसित हो सकतें हैं जब लोगों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हो। इस तरह सोशल मीडिया स्वतंत्रता के इन मंचों के माध्यम से डिजिटल लोकतंत्र की अवधारणा को मजबूत करता है। सोशल मीडिया एक ऐसा प्लेटफार्म है जहाँ अजेय प्रतीत होने वाली सरकारों पर भी सवाल उठाया जा सकता है, उनकी जवाबदेही तय कर सकता है।भारतीय राजनीतिक परिदृश्य में सोशल मीडिया क्रांति वास्तविक में बहुत ही ज्यादा तेज हो रही है। भारत में युवा आबादी में वृद्धि के साथ- साथ सोशल मीडिया का महत्व भी बहुत हद तक बढ़ गया है। क्योंकि हमारे देश में सबसे ज्यादा इंटरनेट का इस्तेमाल वही करते हैं। और इसी कारण सोशल मीडिया अब भारतीय राजनीतिक दलों द्वारा गंभीरता से मतदाताओं तक पहुंचने के साधन के रूप में माना जा रहा है । एक मतदाता के रूप में हमसे अपेक्षा की जाती है कि अपने नेता का चुनाव निष्पक्ष होकर तर्कपूर्ण ढंग से करें,न कि किसी पूर्वाग्रह अथवा जातीय, धार्मिक कुंठा के साथ। कहा जाता है कि हम विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र है, यहाँ राजतंत्र समाप्त हो चुका है, औपनिवेशिक शासन समाप्त हो गया है और अब हम स्वतंत्र हैं। क्या सच में हम वास्तविक लोकतंत्र हैं? सही लोकतंत्र में धर्म, जाति और क्षेत्रीयता जैसे तत्व मतदान के प्रमुख निर्धारक नहीं होते हैं। राजनीतिक दलों की पहुँच से सोशल मीडिया भी अब अछूता नहीं रहा है, ऐसा माना जाता है कि सोशल मीडिया अपेक्षाकृत अधिक पारदर्शी है तथा यहाँ पर सूचनाओं को नियंत्रित अथवा मैनिपुलेट नहीं किया जा सकता है परंतु वर्तमान राजनितिक माहौल में सोशल मीडिया भी इस राजनितिक प्रभाव से अछूता नहीं रह पाया है। एक प्रगतिशील समाज की सामाजिक जड़ता समय के साथ कम होती जाती है परंतु मीडिया एवं राजनीतिक दलों के गठजोड़ ने न केवल सामाजिक विकास को बाधित किया है बल्कि सामाजिक जड़ता को और मज़बूत किया है। स्वतंत्रता प्राप्ति के ७० (70) वर्षों के पश्चात् चुनावों को सर्वाधिक प्रभावित करने वाले बिंदु आज भी जाति और धर्म ही हैं। देश में लोकतंत्र को सशक्त बनाने के लिये सर्वाधिक आवश्यक है कि हम ऐसी किसी भीड़ का हिस्सा न बनें जो केवल भावनाओं एवं पूर्वाग्रहों को हथियार बनाकर राजनीतिक दलों एवं मीडिया प्रोपगेंडा द्वारा संचालित हो। समर्थन या विरोध हमारा स्वयं का होना चाहिये जो हमारे तर्क एवं विश्लेषण की परिणति हो, न कि किसी कुटिल वाह्य प्रेरक की।अगर आँकड़ों की बात करें तो इस समय भारत में १३ (13) करोड़ से अधिक इंटरनेट कनेक्शन हैं जिनमें से साढ़े छह करोड़ से अधिक लोग फेसबुक पर हैं और यह संख्या लगातार बढ़ ही रही है जिसका अंदाज़ा इस बात से लग सकता है कि फेसबुक के इस्तेमाल में भारत, अमरीका के बाद दूसरे नंबर पर है.स्कूल, कॉलेज हों या विज्ञापन देने वाली बड़ी-छोटी कंपनियां- हर कोई सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर रहा है युवा लोगों तक पहुंचने के लिए। हर राजनीतिक दल सोशल मीडिया के लिए अपनी अपनी रणनीति तय कर रहा है.पिछले दिनों आईआरआईएस नॉलेज फाउंडेशन की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि कम से कम १६० (160) लोकसभा क्षेत्रों में सोशल मीडिया उम्मीदवारों की जीत या हार तय करेगा। सोशल मीडिया को इस तरह से विनियमित( regulate ) करने की आवश्यकता है, जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, अल्पसंख्यकों के हित, कानून और व्यवस्था के बीच संतुलन बनाए तथा शासन प्रक्रिया में आम नागरिकों की भागीदारी को प्रोत्साहित करे।
बिधिवत सतर्कीकरण एवं डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस समाचार में दिया गया वक़्तवय और टिप्पणी एक निरपेक्ष न्यूज़ पोर्टल की हैसियत से पत्रकारिता के क्षेत्र में जमीनी स्तर पर काम करने के हमारे अनुभव के आधार पर दिया गया है। हम एक स्वतंत्र समाचार पोर्टल के रूप में खुद को भी नहीं बख्श रहे हैं और अपनी पीठ पर भी चाबुक लगा रहे हैं और इस प्रक्रिया में खुद को भी शामिल कर रहें हैं। हमारा उदेश्य किसी समाचार समूह, राजनितिक दल,या कॉर्पोरेट पर इल्जाम लगाना नहीं है। हम केवल अपने विचारों को साझा कर रहे हैं जो हमने पत्रकारिता के क्षेत्र में काम करते हुए अनुभव किए हैं और आम लोगों के साथ हमारी बातचीत के दौरान उभर कर आयें है। (हकीक़त न्यूज़ www.haqiquatnews.com) अपने सामाजिक जिम्मेदारी के प्रति पूरी तरह से जागरूक न्यूज़ पोर्टल है।
Add Comment