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पश्चिम बंगाल कांग्रेस अध्यक्ष में बदलाव क्या यह बंगाल की राजनीति में गेम चेंजर साबित होगा?

नन्द दुलाल भट्टाचार्य, हक़ीकत न्यूज़, पश्चिम बंगाल : पश्चिम बंगाल की राजनीति में हाल ही में कांग्रेस पार्टी ने एक बड़ा बदलाव किया है। पार्टी ने अपने प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी पर नया चेहरा शुभंकर सरकार के रूप में लाया है। यह कदम पश्चिम बंगाल में पार्टी के भविष्य और राज्य की राजनीति में उसके प्रभाव के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है। हालांकि, सवाल उठता है कि क्या यह बदलाव बंगाल की राजनीति में कांग्रेस के लिए गेम चेंजर साबित हो सकता है?प्रजातंत्र में राजनेता या राजनितिक दल की सोच से ज्यादा महत्वपूर्ण है आम जनमानस की धारणा और स्वीकार्यता और शायद आने वाले कल में बंगाल कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष के रूप में शुभंकर सरकार के लिये यह एक बड़ी चुनौती होगी।

                                                                              राजनीतिक पृष्ठभूमि
पश्चिम बंगाल में पिछले कई वर्षों से कांग्रेस का राजनीतिक ग्राफ लगातार कमजोर होता गया है। जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं की कमी ने भी कांग्रेस को बहुत हद तक कमजोर किया है। कांग्रेस के पास न तो जमीनी स्तर पर मजबूत कैडर रहा और न ही पार्टी को पुनर्जीवित करने की कोई ठोस रणनीति। कांग्रेस में सठिक स्थानीय नेतृत्व की कमी भी पार्टी की गिरावट का एक बड़ा कारण रही है। स्थानीय नेतृत्व ने पश्चिम बंगाल के स्थानीय मुद्दों से खुद को बहुत दूर रखा और कांग्रेस का यह disconnect उसे जनता से और दूर करता चला गया जिसके चलते पार्टी का संगठनात्मक ढांचा ही पूरी तरह कमजोर पर गया ढांचे की कमजोरी और दिशाहीन स्थानीय नेतृत्व पार्टी को ढ़लान की कगार तक ले आया। राष्ट्रीय नेतृत्व भी पश्चिम बंगाल के संदर्भ में सक्रिय भूमिका निभाने में विफल रहा। इसका नतीजा यह हुआ कि पार्टी न केवल चुनावों में पिछड़ती गई, बल्कि उसे जनाधार भी गंवाना पड़ा। पश्चिम बंगाल में कांग्रेस के भीतर आंतरिक कलह और गुटबाजी भी पार्टी के पतन का एक प्रमुख कारण रही है। समय-समय पर पार्टी के कई प्रमुख नेताओं ने कांग्रेस छोड़कर तृणमूल कांग्रेस या अन्य दलों का दामन थाम लिया। इससे पार्टी की संगठनात्मक संरचना कमजोर हो गई और चुनावों में एकजुट होकर लड़ने की क्षमता पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा ) के बीच राज्य की राजनीति का ध्रुवीकरण कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती बना हुआ है। कभी राज्य की प्रमुख पार्टी रही कांग्रेस अब तीसरे या चौथे स्थान पर सिमट कर रह गई है। लेफ्ट फ्रंट के साथ चुनावी गठजोड़ भी पूरी तरह नकारात्मक रहा और चुनावी नतीजे अपने आप में बयान कर रहे हैं की आम जनमानस ने इस गठजोड़ की राजनीती को पूरी तरह नकार दिया है। तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी ने लगातार राज्य के सामाजिक और आर्थिक मुद्दों को अपने राजनीतिक एजेंडे में सक्रिय रखते हुए राज्य की सत्ता पर मजबूत पकड़ बनाई है, और बीजेपी भी यहां अपने जनाधार को तेजी से मजबूत कर रही है। इस स्थिति में, कांग्रेस के पास एक ठोस नेतृत्व की आवश्यकता है, जो न केवल पार्टी को संगठित कर सके, बल्कि राज्य की जनता को भी जमीनी स्तर पर स्थानीय मुद्दों से जुड़कर अपनी कार्यशैली के द्वारा प्रभावित कर सके।

                                                                            अध्यक्ष परिवर्तन के कारण
पश्चिम बंगाल कांग्रेस के अध्यक्ष में बदलाव कई कारणों से जरूरी हो गया था। सबसे पहले, पार्टी को राज्य में फिर से संगठित करने की आवश्यकता थी। पिछले अध्यक्ष के नेतृत्व में कांग्रेस के प्रदर्शन में कोई उल्लेखनीय सुधार नहीं हुआ था, और पार्टी को लगातार चुनावी हार का सामना करना पड़ा था। और हकीकत यह है की बंगाल कांग्रेस का जनाधार ना के बराबर पहुँच गया है। दूसरा कारण यह है कि टीएमसी और बीजेपी के कड़े मुकाबले के बीच, कांग्रेस को एक मजबूत, सक्रिय और प्रभावशाली राज्य नेतृत्व की जरूरत थी, जो पार्टी को क्षेत्रीय स्तर पर नई ऊर्जा दे सके और जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं को सक्रिय कर सके।

                                                                                 नए अध्यक्ष से उम्मीदें
नए कांग्रेस अध्यक्ष से उम्मीद की जा रही है कि वह संगठन को फिर से सक्रिय करेंगे और उन मुद्दों पर जोर देंगे जो राज्य की जनता के लिए महत्वपूर्ण हैं। पश्चिम बंगाल की राजनीति में ममता बनर्जी का वर्चस्व तोड़ना आसान नहीं होगा, लेकिन कांग्रेस के पास अभी भी राज्य में एक आधार है, जिसे नए नेतृत्व के जरिए पुनर्जीवित किया जा सकता है। इसके अलावा, कांग्रेस को अपने पारंपरिक वोट बैंक को फिर से हासिल करने और नए मतदाताओं को जोड़ने की रणनीति पर काम करना होगा। राज्य की जनता के बीच जमीनी मुद्दों पर काम करते हुए, कांग्रेस के लिए क्षेत्रीय दलों और भाजपा से मुकाबला करना जरूरी है।

                                                                   क्या यह बदलाव गेम चेंजर हो सकता है?

बंगाल की राजनीति में कांग्रेस के लिए यह अध्यक्ष परिवर्तन महत्वपूर्ण साबित हो सकता है, लेकिन इसे ‘गेम चेंजर’ कहना अभी जल्दबाजी होगी। बदलाव का असली असर तब दिखाई देगा जब नया नेतृत्व पार्टी के अंदरूनी ढांचे को सुधारकर राज्य की राजनीति में कांग्रेस की उपस्थिति को मजबूत करेगा। कांग्रेस के सामने कई चुनौतियां हैं, जैसे कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाना, संगठनात्मक ढांचे को दुरुस्त करना और जनता के बीच अपनी उपस्थिति को बढ़ाना। इसके साथ ही, टीएमसी और बीजेपी के खिलाफ कांग्रेस को एक सशक्त विपक्ष के रूप में खुद को प्रस्तुत करना होगा।

                                                                      निष्कर्ष :
पश्चिम बंगाल कांग्रेस अध्यक्ष में बदलाव निश्चित रूप से पार्टी के लिए एक सकारात्मक कदम है, लेकिन इसे राजनीति में निर्णायक बदलाव के रूप में देखना अभी जल्दबाजी होगी। कांग्रेस को अपनी रणनीति में सुधार करते हुए जमीनी स्तर पर काम करने की जरूरत है। अगर कांग्रेस को पश्चिम बंगाल में फिर से मजबूत होना है, तो उसे एक नए सशक्त नेतृत्व के साथ -साथ राज्य की स्थानीय राजनीति और मुद्दों पर भी अपनी पकड़ मजबूत करनी होगी। केवल तभी कांग्रेस अपने खोए हुए जनाधार को वापस हासिल कर सकेगी। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि नया नेतृत्व पार्टी को किस दिशा में लेकर जाता है और क्या यह बंगाल की राजनीति में वाकई कोई बड़ा बदलाव ला सकता है।

 

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Nanda Dulal Bhatttacharyya

Nanda Dulal Bhatttacharyya

पेशे से पत्रकार, निष्पक्ष, सच्ची और ज़मीन से जुड़ी रिपोर्टिंग का जुनून

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