नन्द दुलाल भट्टाचार्य, हक़ीकत न्यूज़, कलकत्ता : जितना दम बीड़ी पीने वाले का घुट रहा है उतना ही बीड़ी बनाने वाले मजदूर का भी। पीने वाला आदतन मजबूर है और बनाने वाला अपनी आजीविका और हालात से मजबूर। १९३० (1930) के दशक से व्यावसायिक रूप से बंगाल में बीड़ी के उत्पादन की शुरुआत हुई थी। पश्चिम बंगाल में बड़ी संख्या में बीड़ी प्रतिष्ठान हैं, जिनमें बड़ी संख्या में बीड़ी कामगार कार्यरत हैं। असंगठित छेत्र के श्रमिकों में भी यह तबका सबसे कमजोर वर्गों में से एक माना जाता है। अधिकांश बीड़ी श्रमिक अपने घरों से काम करते हैं और उनमें से ७० %( 70 %) से अधिक महिला श्रमिक हैं। बीड़ी बनाने का उद्योग हमारे राज्य की ग्रामीण अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण अंग है। उद्योग कुछ जिलों में ज्यादा केंद्रित है जबकि यह अन्य जिलों में भी बिखरा हुआ है। बीड़ी बनाना एक प्रमुख व्यवसाय के रूप में वर्तमान में मुर्शिदाबाद, मालदा, उत्तर दिनाजपुर , कूचबिहार, पुरुलिया, उत्तर 24 परगना, नदिया और पूर्व मेदिनीपुर जिलों में पाया जाता है। पश्चिम बंगाल में थोक उत्पादन में शामिल प्रमुख बीड़ी ब्रांडों के लगभग ९० (90) पंजीकृत निर्माता हैं। बीड़ी कामगारों (औद्योगिक और गृह कामगारों) की अनुमानित संख्या लगभग २० (20) लाख है। मुर्शिदाबाद में कई बड़ी बीड़ी निर्माण कंपनियां है और राज्य में बीड़ी श्रमिकों की संख्या सबसे अधिक मुर्शिदाबाद ज़िले में ही है। श्रमिक ज्यादातर महिलाएं हैं और बहुत ही गरीब हैं। मुर्शिदाबाद के कुछ इलाकों में तो पूरा परिवार बीड़ी बनाने पर निर्भर है। कारखाने के मालिकों द्वारा कच्चे माल की आपूर्ति ‘मुंशी’ (एजेंटों) के माध्यम से की जाती है। मुंशी बीड़ी भी इकट्ठा करते हैं। १००० (1000) बीड़ी बनाने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत मजदूरी दर १६९ (169) रुपये है। (जो लगभग एक दिन की मजदूरी के बराबर है) लेकिन वास्तव में अक्सर समय श्रमिकों को उनके द्वारा बनाई जाने वाली सभी बीड़ी के लिए भुगतान नहीं किया जाता है, अस्वीकृति (रिजेक्शन) की उच्च दर के कारण। अस्वीकृत ( रिजेक्टेड ) बीड़ी के लिए कोई मजदूरी का भुगतान नहीं किया जाता है। मुंशी रिजेक्टेड बीड़ी ले लेते हैं या बाजार में कम दर पर बेचते हैं। इसलिए ज्यादातर कमाई न्यूनतम मजदूरी से काफी कम हो जाती है। बीड़ी का उत्पादन और उसकी बिक्री से जुड़ा व्यवसाय मूल रूप से कुटीर उद्योग है। एक अनुमान के मुताबिक पुरे भारत में दो करोड़ साठ लाख तंबाकू किसान, पच्चासी लाख बीड़ी मजदूर, चालीस लाख से अधिक तेंदुपत्ता संग्राहक परिवारों के साथ लाखों पान विक्रेताओं की आजीविका बीड़ी उद्योग पर निर्भर करती है। सवाल यह नहीं है कि बदलते समय के साथ बीड़ी उद्योग के लिए नए कानून नहीं बनाए गये, लेकिन नए कानून तथा कोरोना जैसी महामारी का आघात झेल रहे इन श्रमिकों पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों का समाधान भी निकालना आवश्यक है। बीड़ी श्रमिकों के उत्थान के लिए सरकार ने समय-समय पर कदम उठाए हैं। ग्रामीण इलाकों में रहने वाले इन बीड़ी श्रमिकों पर केंद्रित कई सरकारी योजनाएं शुरू की गईं। लेकिन हकीकत है कि अशिक्षा, जागरूकता और इनके बीच सरकारी योजनाओं के प्रचार-प्रसार के अभाव में बीड़ी मजदूरों को इन योजनाओं का लाभ बहुत ही कम मिल पाया। आज स्थिति यह है कि बहुत कम अनुपात में बीड़ी श्रमिक सरकारी योजनाओं में अपना नाम दर्ज करा पाते हैं। तंबाकू की धूल के लगातार संपर्क में रहने के कारण और कई घंटों तक एक टक आंखें गड़ा बीड़ी बनाने वाली वाले श्रमिक टीवी, दमा , पोस्टुरल समस्याएं (गर्दन और पीठ के निचले हिस्से में दर्द), पेट में दर्द, आंखों की समस्याएं, और सांस से जुड़ी कई गंभीर बीमारियों के शिकार हो जाते हैं। बीड़ी श्रमिकों के साथ बातचीत के दौरान कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों का संकेत मिला है जो बीड़ी श्रमिकों को प्रभावित करते हैं। प्रत्येक बीड़ी श्रमिक का पंजीकरण और प्रलेखन, बीड़ी निर्माताओं और मुंशी का विनियमन, बीड़ी निर्माताओं और श्रमिकों के बीच सीधा संबंध स्थापित करना, विशेष रूप से बीड़ी श्रमिक समुदायों के बच्चों के लिए शिक्षा के अधिकार को लागू करना, स्वास्थ्य की रक्षा के लिए निवारक उपाय (preventive measures) एवं जागरूकता, बीड़ी कामगारों को कल्याणकारी योजनाओं की जानकारी प्रभावी ढंग से और बार-बार देना। बीड़ी उद्योग में कामगार ज्यादातर घर में बैठकर काम करते हैं और उनके काम की प्रकृति ही उन्हें अदृश्य बना देती है। इसके अलावा वे ज्यादातर गतिशीलता और अन्य प्रतिबंधों वाली महिलाएं हैं, इसलिए उन्हें व्यवस्थित करना एक बड़ी चुनौती है। INTUC (इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस), AITUC (आल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस ) , CITU (सेंटर फॉर इंडियन ट्रेड यूनियन ) जैसे ट्रेड यूनियनों ने राज्य में बीड़ी श्रमिकों को संगठित करने का प्रयास किया है और विशेष रूप से मजदूरी और भविष्य निधि लाभ के मुद्दों को उठाया है। लेकिन इन ट्रेड यूनियन के प्रयासों के बावजूद, वर्तमान में यूनियनों में सिर्फ १५% (15%) बीड़ी श्रमिक ही संगठित हैं। लेकिन एक बात बहुत ही ध्यान देने योग्य है, ऐसा उद्योग जहां अधिकांश श्रमिक महिलाएं हैं, उन्हें ट्रेड यूनियन के नेताओं के रूप में प्रतिनिधित्व नहीं किया जाता है और न ही वे ट्रेड यूनियन की निर्णय लेने की प्रक्रिया में भाग लेते हैं। ट्रेड यूनियनों को भी अधिक से अधिक संख्या में बीड़ी श्रमिकों तक पहुँचने और उन्हें सभी सामाजिक लाभों से अवगत कराने के लिए सक्रिय कदम उठाने की आवश्यकता है। बीड़ी मजदूरों से जुड़ी समस्याओं को ध्यान में रखते हुए एक दीर्घकालिक उद्देश्यपूर्ण योजना समय की जरूरत है। सिर्फ एक सांकेतिक मार्च या रैली शायद इन बीड़ी श्रमिकों के समस्यायों का समाधान नहीं है।
कम मजदूरी और स्वास्थ्य ख़तरों के बीच झूल रहें हैं बीड़ी श्रमिक, बीड़ी श्रमिकों की जमीनी हकीक़त – एक ग्राउंड रिपोर्ट
June 26, 2022
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Nanda Dulal Bhatttacharyya
पेशे से पत्रकार, निष्पक्ष, सच्ची और ज़मीन से जुड़ी रिपोर्टिंग का जुनून
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