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गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव क्या राष्ट्रीय स्तर पर कोई दिशा निर्देश दे रहें हैं?

नन्द दुलाल भट्टाचार्य, हक़ीकत न्यूज़, दिल्ली : प्रजातंत्र के इस महापर्व – गुजरात, हिमाचल प्रदेश के चुनाव में आम इंसान ने अपना जनादेश दे दिया है। राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर इन निर्वाचनों पर बहुत सारे नेताओं, राजनितिक विश्लेषकों, और तथाकथित बुद्धिजीवीवों ने टीवी के मंच पर टिप्पणियां और अपनी सोच भी रखी है लेकिन शायद किसी आम इंसान की नज़र से इन निर्वाचनों का निरपेक्ष विश्लेषण नहीं किया गया है। प्रजातंत्र में आम इंसान को ही संविधान ने भाग्य विधाता का दर्जा दिया है इसीलिए चुनावी नतीजों को जनादेश कहा जाता है। आम इंसान अपनी राय और प्रतिनिधित्व का उत्तरदायित्व राजनितिक दलों के उम्मीदवारों पर उनके किये वादों पर सौंपता है।इसलिए प्रजातंत्र में राजनेता या राजनितिक दल क्या सोच रहा है वह कोई ज्यादा मायने नहीं रखता है अगर मायने रखता है तो वह आम इंसान की सोच।चलिए थोड़ा गुजरात, हिमाचल प्रदेश के चुनावों में मिले जनादेश को जन की नज़र से देखा जाये – पहली बार गुजरात के चुनाव में एक त्रिकोणीय राजनितिक लड़ाई हुई है इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने प्रचंड बहुमत के साथ १५६ (156) सीटों पर जीत हासिल की है और अपने ५२.५% ( 52.5%) वोट शेयर के साथ पिछले चुनावों के मुकाबले एक अच्छी बड़ोतरी भी कर ली है। कांग्रेस पार्टी १७(17) सीटों में ही सिमट कर रह गयी है और अगर वोट शेयर की बात करें तो २०१७(2017) के ४१.४ % ( 41.4 %) वोट शेयर के मुकाबले घटकर २७.३ %( 27.3 %) पर आ पहुंची है। आम आदमी पार्टी ५ (5) सीटों और १२.९२% (12.92%) वोट शेयर के साथ इस पहले ही निर्वाचन में एक अच्छी छाप रखने में कामयाब रही। और शायद आने वाले कल में आम आदमी पार्टी गुजरात में एक राजनितिक विकल्प भी बन सकती है। अब थोड़ा हिमाचल प्रदेश के चुनावी नतीजों पर नज़र डाला जाय – हिमाचल प्रदेश के चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने ४०(40) सीटों पर जीत हासिल करने के साथ साथ ४३.९०% (43.90 %) वोट शेयर के साथ सरकार बनाने पर अपनी मुहर लगा दी है।भारतीय जनता पार्टी सिर्फ २५ (25) सीटें ही जीत पायी है लेकिन अगर वोट शेयर पर नज़र डालें तो एक उम्मीद की किरण जरूर नज़र आती है। ४३% (43%) वोट शेयर के साथ भाजपा सत्ता में तो नहीं आ पायी पर अपना जनाधार बरक़रार रखने में कामयाब रही। आम आदमी पार्टी १.१०% (1.10%) वोट शेयर के साथ एक भी सीट जितने में नाकामयाब रही लेकिन इस चुनाव में कहीं न कहीं वह आम इंसान के समक्ष अपना पदछाप रखने में कामयाब रही जो उसे आने वाले चुनावों में काफी हद तक मदद करेगा। किसी भी प्रक्रिया का सतही और सूक्ष्म विश्लेषण होता है (मैक्रो एंड माइक्रो एनालाइसिस) सतही तौर पर विश्लेषण का रूप सूक्ष्म विश्लेषण में कभी कभी कुछ और ही सच्चाई बयान करती है। सतही तौर पर गुजरात चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को प्रचंड बहुमत मिला है इसमें कोई दो राय नहीं है लेकिन एक बिलकुल नए राजनितिक दल आम आदमी पार्टी को गुजरात के चुनाव में ५ (5) सीट और लगभग १३% (13%) वोट शेयर देकर आम इंसान ने अपने जनादेश में शिक्षा, स्वास्थ्य परिशेवाओं पर सत्ताधारी दल की कमजोरी पर अपना अंसतोष भी जताया है। और अगर कुल विपक्ष की वोट शेयर की बात करें तो लगभग ४४.५६% (44. 56%) वोट विपक्षी दलों को मिला है। हिमाचल प्रदेश में सत्ता कांग्रेस दल को मिली तो है पर आम इंसान का निरंकुश भरोसा कांग्रेस दल जीत नहीं पायी है यही कारण भी है भारतीय जनता पार्टी के वोट शेयर और जनाधार में कुछ खास कमी नज़र नहीं आयी। इसका कारण भी यह है की कांग्रेस दल भी हिमाचल की सत्ता पर बहुत सालों तक रह चुकी है। अगर राजनीतिक दृष्टिकोण से गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव को देखें तो भारतीय जनता पार्टी का पलड़ा ज्यादा भारी नज़र आयेगा। जहाँ हिमाचल प्रदेश का लोकसभा में ४ (4) सीट है वहीं गुजरात का २६ (26) सीट। इस गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव में मतदाताओं ने दोष प्रत्यारोप और नकारात्मक राजनीती से उभरकर राज्य के विकास और आम इंसान के जीवन मान की उन्नति पर ही अपनी मुहर लगायी है और राजनितिक दलों को एक सन्देश भी दिया है की नकारात्मक और दोष प्रत्यारोप की राजनीती से ऊपर आ कर राजनितिक दलों को विशिष्ट समयबद्ध तरीके से आम इंसान के जीवन मान की उन्नति के लिए काम करना पड़ेगा । पहली बार विशेष कर गुजरात में स्टार्टअप इकाइयों, शिक्षा, स्वास्थ्य, बेरोजगारी, कृषि पर राजनितिक दल सिर्फ अपने घोषणा पत्र तक ही सीमित नहीं रहे बल्कि चुनावी प्रचारों में भी इसको अहमियत दी है। राजनितिक फायदे की बात करें तो अभी भी निर्विवाद रूप से सर्वाधिक स्वीकृत ब्रांड मोदी पूरी तरह कारगर हैं और इस गुजरात चुनाव ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कद और बड़ा दिया है। अगर ग्रैंड ओल्ड पार्टी कांग्रेस को देखें तो गुजरात चुनाव में उनका जनाधार और वोट शेयर दोनों में कमी आयी है। कांग्रेस का गुजरात के ग्रामीण इलाकों पर पकड़ आम आदमी पार्टी की तरफ खिसकती नज़र आ रही है। इसका एक बड़ा कारण राहुल गाँधी समेत कांग्रेस के कई बड़े नेताओं का गुजरात से दूरी बनाये रखना। हिमाचल प्रदेश में सत्ता तो मिली है लेकिन इसका श्रेय पूरी तरह से प्रदेश इकाई को जाता है। राहुल गाँधी भारत जोड़ो यात्रा पर अपना ध्यान केंद्रित किये हुए हैं लेकिन उसका कोई फायदा इन चुनावों में मिलता नज़र नहीं आ रहा है। हो सकता है की आने वाले दिनों में इस भारत जोड़ो यात्रा का फायदा कांग्रेस दल को मिले यह तो आने वाला वक़्त ही बतायेगा। सबसे ज्यादा फ़ायदा अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को हुआ है उन्हें सिर्फ राष्ट्रीय दल का दर्जा ही नहीं बल्कि आने वाले कल में राष्ट्रीय स्तर पर राजनितिक विकल्प देने वालों की कगार पर बहुत ऊँचे दर्जे पर खड़ा कर दिया है। लोकतंत्र में चुनावी हार जीत तो लगी रहती है लेकिन संसदीय लोकतंत्र में सत्तारूढ़ दल और विपक्षी दल की पारस्परिक जवाबदेही की प्रणाली अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। एक सशक्त विपक्ष लोकतंत्र के मूल भावनाओं के संरक्षण में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। लेकिन,वर्तमान में हमारे देश का संसदीय विपक्ष बिलकुल खंडित और अव्यवस्थित नज़र आता है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में भारत के संसदीय प्रणाली में एक सशक्त विपक्ष का होना बहुत ही जरूरी है। विशेषकर जब लोकतंत्र का मूल्यांकन करने वाले विभिन्न सूचकांकों में इसकी वैश्विक रैंकिंग में लगातार गिरावट आ रही है। हमारे जैसे जीवंत लोकतंत्र में एक सक्रिय, सशक्त एवं प्रभावी विपक्ष का होना बहुत ही आवश्यक है। गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनावों ने एक दिशा जरूर दी है की आने वाले कल में कांग्रेस के राहुल गाँधी के साथ साथ अरविन्द केजरीवाल भी एक सशक्त नेता के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर उभर कर आ रहें हैं और राष्ट्रीय स्तर पर राजनितिक विकल्प देने में पूरी तरह सक्षम हैं ।

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