नन्द दुलाल भट्टाचार्य, हकीकत न्यूज़, कलकत्ता : पुरे देश की तरह पश्चिम बंगाल में भी सब्जियों की कीमतों में अच्छी खासी बड़ौतरी हुई है। पिछले एक पखवाड़े के मुकाबले सब्जी के दामों में थोड़ी गिरावट तो आयी है लेकिन अभी भी स्वीकार्य कीमत तक पहुंचने में शायद थोड़ा वक़्त लगेगा। चाहे गैस की बढ़ती कीमतें हों या सब्जियों और दूध की बढ़ती कीमतें, सभी चीजें आम इंसान की मुसीबतें बढ़ाती हैं। बढ़ती महंगाई ने घर चलाना मुश्किल कर दिया है। थोक विक्रेताओं के अनुसार ज्यादा गर्मी और परिवहन लागत में बड़ोतरी के कारण सब्जियों के दामों में अचानक इतना बड़ौतरी हुई है। यह बहुत ही सरलीकरण व्याख्या है। भीषण गर्मी, मात्रा से बहुत अधिक बरसात, परिवहन लागत में बड़ोतरी सब्जी के दामों में इजाफ़ा के कारण तो हैं लेकिन किसान के खेत से लेकर आपकी रसोई तक कृषि उत्पाद ( सब्जी,फल,अनाज ) पहुंचने की पूरी प्रक्रिया में कुछ तो अनकही हकीकत भी है ? एक अनुमान यह भी है कि फलों एवं सब्जियों के उत्पादन का लगभग ३०-४० ( 30 – 40) प्रतिशत हिस्सा तुड़ाई उपरांत सही भंडारण प्रणाली के अभाव के कारण क्षतिग्रस्त हो जाता है। यदि फलों एवं सब्जियों का तुड़ाई उपरांत सही समय और सही तरीके से भंडारण किया जाय तो क्षति की संभावना बहुत हद तक कम की जा सकती है। हमारा देश विश्व के कुछ ही गिने चुने देशों में से एक है जहाँ लगभग हर प्रकार की जलवायु पाई जाती है। यही कारण है कि हमारे देश में विविध प्रकार के फल और सब्जियां उगाई जाती हैं। इस समय हमारा देश फलोत्पादन (८८.९ (88.9) मीट्रिक टन) एवं सब्जियों के उत्पादन (१७०.८ (170.8) मीट्रिक टन) में विश्व में चीन के बाद दुसरे पायदान पर है। गेहूं और चावल की तुलना में फल और सब्जियां बहुत अधिक नाशवान प्रकृति की होती हैं।अधिकतर फलों व सब्जियों में ८० (80) से ९५ (95) प्रतिशत तक पानी होता है और यही कारण है कि वे शीघ्र नष्ट हो जाते हैं।सब्जियों की कीमतों में अचानक आया यह उछाल कहीं इस बात का सूचक तो नहीं कि ग्लोबल वार्मिंग ( global warming ) के कारण देश की खेती भी बुरी तरह प्रभावित हो रही है। उपलब्ध आकड़ों के अनुसार जलवायु पैटर्न में बदलाव एक वैश्विक घटना है जिसने हमारे देश में फसल की पैदावार को भी बुरी तरह प्रभावित किया है। इसने उन क्षेत्रों की मिट्टी, पानी और कीटों की व्यापकता को प्रभावित करके उन फसलों के प्रकारों को भी प्रभावित किया है जिनकी खेती कुछ क्षेत्रों में की जा सकती है। भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि सबसे बड़े और सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में से एक है। २०२० – २०२१ (2020-21) में हमारे देश की सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में कृषि छेत्र का योगदान लगभग १९.९ (19.9) प्रतिशत है। इसके अलावा,यह क्षेत्र लगभग ४२.६ (42.6) प्रतिशत भारतीय आबादी को रोजगार देता है। अचानक तापमान में वृद्धि, वर्षा के स्वरूप (pattern ) में बदलाव, बाढ़ तो कहीं सूखा यहअत्यधिक जलवायु परिवर्तन कृषि उपज को सीधे तौर पर बहुद ज्यादा प्रभावित करता है। अत्यधिक जलवायु परिवर्तन के कारण आने वाले वर्षों में खाद्य उत्पादन में भारी गिरावट की संभावना को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है और इसका कृषि क्षेत्र के राजस्व पर गंभीर असर पड़ सकता है। शायद वक़्त आ गया है की हमारे देश में खेती के तरीकों में जल्द परिवर्तन किया जाय।वक़्त के तकाजे को मद्दे नज़र रखते हुए हमारे कृषि क्षेत्र में जलवायु-लचीला कृषि (Climate-Resilient Agriculture -CRA) दृष्टिकोण को शामिल करने का समय आ गया है इसे और तत्काल प्रभाव से पहल करने की आवश्यकता है।तेज़ी से बढ़ती हुई देश की आबादी और इस अत्यधिक जलवायु परिवर्तन के कारण गिरता हुआ कृषि उत्पादन कृषि क्षेत्र में तुरंत जलवायु-लचीली कृषि प्रणालियों (Climate-Resilient Agriculture -CRA) को अपनाने की मांग कर रहा है।
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