नन्द दुलाल भट्टाचार्य, हकीकत न्यूज़, कोलकाता : हमारे देश में अमीर और गरीब के बीच आर्थिक असमानता क्यों लगातार बढ़ती नज़र आ रही है? एक तरफ जहाँ देश में लगभग ८४ (84) प्रतिशत परिवारों को जीवन और आजीविका के जबरदस्त नुकसान के कारण एक वर्ष में अपनी आय में भारी गिरावट का सामना करना पड़ा और दूसरी तरफ हमारे देश में अरबपतियों की संख्या १०२ (102) से बढ़कर १४२ (142) हो गई है। यह महत्वपूर्ण नहीं है कि हमारे देश में कितने अरबपति पैदा हो रहे हैं ,हमें अपने लोकतांत्रिक परिप्रेक्ष्य से इन आर्थिक असमानताओं को देखने की बहुत ही जरूरत है। यदि हमारे देशों के अधिकांश नागरिकों को अपनी न्यूनतम मूलभूत आवश्यकताओं के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है तो धन के असमान वितरण का एक बड़ा प्रश्न खड़ा हो रहा है और यह आर्थिक असमानता कहीं न कहीं हमारे गणतांत्रिक मूल्यबोध और ढांचे पर ही कुठाराघात कर रही है। अगर हम जरा कोरोना महामारी के दौरान के आकड़ों की तरफ नज़र डालें तो यह आर्थिक असमानता और भी स्पष्ट हो जायेगी – (मार्च २०२० (2020) से ३० (30) नवंबर, २०२१ (2021) तक। हमारे देश में अरबपतियों की संपत्ति २३.१४ (23.14) लाख करोड़ रुपये (३१३ (313) अरब अमेरिकी डॉलर) से बढ़कर ५३.१६ (53.16) लाख करोड़ रुपये (719 अरब अमेरिकी डॉलर) हो गई है। लेकिन इस दौरान ४.६ (4.6) करोड़ से अधिक भारतीयों के २०२० (2020) में अत्यधिक गरीबी में गिरने का अनुमान है (संयुक्त राष्ट्र के अनुसार वैश्विक नए गरीबों का लगभग आधा)। इस आर्थिक असमानता के बहुमात्रिक कारण हो सकते हैं पर एक मुख्य कारण यह है की हमारे देश में ९३ (93) प्रतिशत कार्यबल अनौपचारिक छेत्र (unorganized sector ) से जुड़े हुए हैं। इस असंगठित क्षेत्र के महत्व को न केवल अर्थव्यवस्था में इसके योगदान के कारण बल्कि आबादी के एक बड़े हिस्से को आजीविका प्रदान करने के कारण भी अच्छी तरह से पहचाना जा सकता है। इन श्रमिकों के पास कार्य सुरक्षा, रोजगार सुरक्षा और सामाजिक सुरक्षा बिलकुल भी नहीं है। एक बड़े असंगठित छेत्र के श्रमिकों का हिस्सा अक्सर कम वेतन के कारण बहुत ही गरीबी और दयनीय स्थिति में जीने को बाध्य होते हैं। पिछले दो दशकों में हमारे देश में अनुभव की गई उच्च आर्थिक वृद्धि ने संगठित क्षेत्र की तुलना में असंगठित क्षेत्र में अधिक संख्या में रोजगार सृजित किए हैं। हमारी सरकारों ने पिछले कुछ दशकों में असंगठित श्रमिकों के लिए काम की न्यूनतम शर्तों को सुनिश्चित करने और उनकी भलाई में सुधार करने के लिए ठोस प्रयास तो किए हैं। हालांकि, इन पहलों का प्रभावी कार्यान्वयन अभी भी संदिग्ध है। अगर हम देश की आर्थिक स्थिति पर थोड़ा सूक्ष्म नजर डालें तो पिछले तीन दशकों से यह आर्थिक असमानता तेजी से बढ़ रही है। जहाँ एक तरफ अमीर लोग बहुत तेज गति से अमीर हो रहे हैं, जबकि गरीब अभी भी न्यूनतम मजदूरी अर्जित करने, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंचने के लिए निरंतर संघर्ष कर रहे हैं। ये बढ़ती खाई और बढ़ती आर्थिक असमानताएं महिलाओं और बच्चों को सबसे अधिक प्रभावित कर रहीं हैं। हमारे जैसे जीवंत प्रजातंत्र के लिए यह बहुत ही गंभीर चिंताजनक और सोच का विषय है। हमारे देश में स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा के निजीकरण ( Privatisation) भी शायद आर्थिक असमानता को बढ़ावा देने वाले कारक रहे हैं। ऑक्सफैम इंडिया ( Oxfam India ) द्वारा २०२१ (2021) के एक सर्वेक्षण में ५२ (52) प्रतिशत माता-पिता,जो अपने बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की आशा के साथ सरकारी स्कूलों की जगह बहुत ज्यादा फीस देकर निजी स्कूलों में भेजते हैं पर शिक्षकों को बेहतर वेतन और सुविधाओं के बावजूद सरकारी स्कूल गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने में क्यों असमर्थ हैं? सर्व शिक्षा मिशन के तहत दिया गया नारा “पड़ेगा इंडिया तो बड़ेगा इंडिया” केवल कागज़ों तक ही सीमित नजर आता है। इसके अलावा, सर्वेक्षण से यह भी पता चलता है कि माता-पिता निजी स्कूल ( Private schools) की फीस पर अपनी घरेलू आय ( १५% (15 %) से अधिक) का एक बड़ा हिस्सा खर्च करते हैं। स्कूली शिक्षा के बढ़ते निजीकरण से देश के गरीब और हाशिए पर रहने वाले लोगों, विशेष रूप से महिलाओं और लड़कियों पर बहुत ही प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। ऑक्सफैम इंडिया ( Oxfam India ) की सर्वेक्षण से यह भी पता चलता है कि निजी स्वास्थ्य सेवा (Private healthcare ) की उच्च लागत विशेष रूप से इसकी उच्च लागतों के कारण आम जनमानस को बहुत ही ज्यादा प्रभावित कर रही है और आर्थिक असमानताओं को और बढ़ा रही है।राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (NSSO) (२०१७ -२०१८ 2017-18) के डेटा से यह पता चलता है कि निजी अस्पतालों ( Private Hospitals) में आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय (OOPE) सार्वजनिक अस्पतालों में रोगी देखभाल के मुकाबले लगभग छह गुना ज्यादा है। हमारे देश में औसत आउट ऑफ़ पॉकेट एक्सपेंसेस (OOPE ) ६२.६७ (62.67) प्रतिशत है जबकि वैश्विक ( Global )औसत १८.१२ (18.12) प्रतिशत है। बहुत से आम नागरिक अपनी जरूरत की स्वास्थ्य देखभाल नहीं कर पाते हैं। सबसे आश्चर्य की बात यह है की जब हमारा देश चिकित्सा पर्यटन के लिए एक शीर्ष गंतव्य के हिसाब से जाना जा रहा है पर सही मायनो में आम इंसान इन सही स्वास्थ्य परिशेवाओं से वंचित रह जा रहा है और इसका मुख्य कारण एक अच्छी तरह से वित्त पोषित सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं के स्थान पर तेजी से शक्तिशाली वाणिज्यिक स्वास्थ्य क्षेत्र को बढ़ावा दिया जा रहा है। नतीजतन, सभ्य स्वास्थ्य सेवा केवल उन लोगों के लिए उपलब्ध है जिनके पास इसके भुगतान करने के लिए पैसा है।आम इंसान के लिये सही स्वास्थ्य परिसेवा तो एक विलासिता बन के रह गया है। एक अनुमान के अनुसार हमारे देश में लगभग ६.३ (6.3) करोड़ आम इंसान हर साल स्वास्थ्य देखभाल की लागत के कारण गरीबी की और चले जाते हैं । एक आंकड़े के अनुसार हमारे देश में प्रति सेकंड में लगभग दो लोग स्वास्थ्य परिशेवाओं के ख़र्चों के चलते गरीबी की और धकेले जा रहें हैं ।देश भर के राजनेता, सरकारें, नागरिक समाज, शिक्षाविद और नौकरशाह पिछले कुछ वर्षों में उच्च आर्थिक असमानता और इसके दुष्प्रभावों को दूर करने की आवश्यकता पर बार-बार जोर दे रहे हैं और शायद नीति निर्माताओं को सामाजिक और आर्थिक नीतियों को नवीकरण का समय आ गया है। हालाँकि सरकारों द्वारा वंचितों के लिए बहुत सी लाभकारी नीतियां बनाई जाती हैं,बावजूद इसके जमीनी हकीकत नहीं बदल रही है। बुनियादी मुद्दों जैसे सरकारी स्कूलों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा,सरकारी अस्पतालों में प्रभावी और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा, युवाओं के लिए रोजगार सृजन, असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए एक मजबूत सामाजिक सुरक्षा लागू करना, वंचितों के लिए सामाजिक उत्थान। नीति निर्माताओं को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि नीतियां सिर्फ कागज़ों तक ही सिमित न रहें, इसके बजाय एक समयबद्ध, उद्देश्यपूर्ण और परिणामोन्मुखी तंत्र जो तत्काल सुधारात्मक कदम के साथ नियमित और उचित अनुवर्ती सुनिश्चित करता है।
उपसंहार : हमारे देश में सरकारें अपने सबसे धनी नागरिकों पर बमुश्किल कर लगाती है। सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं पर दुनिया में सबसे कम खर्च करती हैं। # हमारे देश की आबादी के शीर्ष १०(10) प्रतिशत के पास कुल राष्ट्रीय संपत्ति का ७७ (77) प्रतिशत हिस्सा है। # हमारे देश में अरबपतियों की संख्या में अच्छी ख़ासी बड़ोतरी हो रही है ।# एक दशक में अरबपतियों की संपत्ति लगभग १० (10) गुना बढ़ गई और उनकी कुल संपत्ति वित्त वर्ष २०१८-२०१९ (2018-19) देश के पूरे केंद्रीय बजट से अधिक है,जो कि २४, ४२२ (24,422) अरब रुपये है ।
बिधिवत सतर्कीकरण एवं डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस समाचार में दिया गया वक़्तवय और टिप्पणी एक निरपेक्ष न्यूज़ पोर्टल की हैसियत से उपलब्ध तथ्यों और (Oxfam International) ‘Inequality Kills’ नामक शीर्षक से वार्षिक वैश्विक असमानता रिपोर्ट (Global Inequality Report) की समीक्षा के आधार पर दिए गये हैं । इन समीक्षा में दिये गए तथ्य पूर्णतः (Oxfam International) द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट के आधार पर दिए गये हैं।आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए न्यूज़ पोर्टल (हकीक़त न्यूज़ www.haqiquatnews.com) उत्तरदायी नहीं है। (हकीक़त न्यूज़ (www.haqiquatnews.com) अपने सामाजिक जिम्मेदारी के प्रति पूरी तरह से जागरूक न्यूज़ पोर्टल है।
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