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सरकारों को जवाबदेह बनाने के लिए क्या सिर्फ आम नागरिक का वोट डालना काफी है ?

नन्द दुलाल भट्टाचार्य, हक़ीकत न्यूज़, कोलकाता: एक जीवंत प्रजातंत्र में राजनीतिक जवाबदेही के साथ साथ नैतिक जवाबदेही और प्रशासनिक जवाबदेही होना भी बहुत जरुरी है। राजनितिक जवाबदेही में आमतौर पर मतदाताओं के पास चुने हुए प्रतिनिधियों को उनके चुने हुए कार्यकाल के दौरान प्रत्यक्ष तौर पर जवाबदेह ठहराने का कोई तरीका उपलब्ध नहीं है। हालाँकि संविधान एवं विधायिका के पास यह अधिकार है कि वो अपने सदस्यों, सरकार और सरकारी निकायों को जवाबदेह ठहरा सके। लेकिन सही अर्थ में यह प्रक्रिया कितनी कारगर है इसपर एक बड़ा प्रश्नचिन्ह जरूर है। सार्वजनिक नैतिकता और जवाबदेही एक प्रभावी स्थानीय या क्षेत्रीय प्राधिकरण को रेखांकित करने वाली आवश्यक अवधारणाएँ हैं। वे संस्कृति, प्रक्रियाओं, संरचनाओं और नियमों का उल्लेख करते हैं जो यह सुनिश्चित करते हैं कि सार्वजनिक कार्यालय में उनके स्वयं के हित के बजाय व्यापक सार्वजनिक हित में कार्य करें। नैतिकता उन नियमों को शामिल करती है जो सार्वजनिक अधिकारियों के आचरण को परिभाषित करते हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जनता के साथ उचित और समान व्यवहार किया जाता है। नैतिकता अधिकारियों को जनहित में बेहतर निर्णय लेने में मदद करती है और लोगों को सार्वजनिक अधिकारियों द्वारा उनकी ओर से लिए गए निर्णयों का मूल्यांकन करने में मदद करती है। अंत में, सार्वजनिक नैतिकता और जवाबदेही सार्वजनिक सेवाओं में सुधार के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण हैं । प्रशासनिक जवाबदेही यह सुनिश्चित करती है कि सार्वजनिक अधिकारियों द्वारा की जाने वाली कार्रवाइयों और उनके द्वारा लिये गए निर्णयों की समीक्षा की जाए ताकि यह निर्धारित किया जा सके कि सरकार की पहलें उनके घोषित उद्देश्यों को पूरा कर रही हैं अथवा नहीं और जिस समुदाय को वे लाभान्वित करने का लक्ष्य रखती हैं, उन्हें सही तरह लाभ पहुँचा रही हैं या नहीं। प्रशासनिक जवाबदेही और सरकार के प्रशासन में नौकरशाहों को जवाबदेह बनाने के लिए आंतरिक नियमों और मानदंडों के साथ-साथ कुछ स्वतंत्र आयोग भी हैं पर यह कितने कारगर हैं यह एक बड़ा सवाल है। एक कारगर निगरानी इकाई नौकरशाहों को सिर्फ सरकारी विभागों के प्रति नहीं बल्कि नागरिकों के प्रति भी जवाबदेह बनाते हैं। आजादी के बाद से हमारे पास ऐसी सरकारें रही हैं जिन्हें संवैधानिक सिद्धांत पर स्थापित किया जाना चाहिए था – ‘लोगों द्वारा, लोगों की और लोगों के लिए’। सरकार की सर्वोत्तम परीक्षा इस प्रश्न से होती है कि क्या वह आम जनता के लिए समर्पित है? संविधान के जनक डॉ बी.आर. अम्बेडकर ने इस प्रश्न को संभोदित करते हुये यह दावा किया था कि जब तक भारत में लोकतंत्र जीवित रहेगा तब तक यह प्रश्न प्रासंगिक बना रहेगा। उन्होंने संविधान सभा की बहस के समापन सत्र में भी यह कहा था ” इस आजादी से हमने कुछ भी गलत होने के लिए दोष देने का बहाना खो दिया है अगर इसके बाद चीजें गलत हो जाती हैं, तो हमें दोष देने के लिए हमारे अलावा कोई नहीं है”। समय बहुत तेजी से बदल रहा है, लोग नई विचारधाराओं द्वारा प्रेरित होकर बदल रहे हैं। कहीं न कहीं आम इंसान इस प्रकार की शासन प्रणाली से तेजी से थक रहे हैं जिसमे सार्वजनिक स्तर पर राजनितिक, नैतिक और प्रशासनिक जवाबदेही बहुत ही धीमी हो। जिसके चलते स्वाधीनता के सत्तर सालों के बाद भी आम नागरिक शिक्षा, स्वास्थ्य, बेरोजगारी, सर के ऊपर एक छत, कुपोषण, भुखमरी जैसी बुनियादी जरूरतों के लिए जद्दोजहद कर रहें हैं। मुद्दों का समाधान सही दिशा में ना होने के तो बहुत सारे कारक हैं पर एक मुख्य कारण यह भी है कि सरकार का पूरा तंत्र बहुत ही ढीले ढंग से चलना। हर सरकारी महकमा प्रतिस्पर्धी प्रमुखों के साथ विभागों में विभाजित है, जिसके कारण आसानी से अपना दायित्व किसी दूसरे के सर मढ़ देते हैं क्योंकि कोई भी कार्यालय या व्यक्ति हाथ में काम पूरा करने के लिए जवाबदेह नहीं है। हमारे नेता अपने आइवरी टॉवर ( Ivory tower) में रहते हैं और जमीनी हकीकत से पूरी तरह वाकिफ नहीं हैं और अगर होते भी हैं तो इनकी उपेक्षा करते हैं। उन्हें अपने सुविधा क्षेत्र ( comfort zone) और Z- कैटागोरी से बाहर आकर उनके द्वारा बनाए गए भारत का सामना करने की बहुत ही आवश्यकता है। हमारे देश का पुनराविष्कार और यह सुनिश्चित करना कि सरकार द्वारा शुरू किए गए विकास कार्य सही लाभार्थी तक पहुंचाने के लिए सरकारों को शासन के संचालन मैनुअल को फिर से लिखना चाहिए और इसकी वितरण प्रणाली का पुनर्गठन करना चाहिए सिर्फ तभी सही अर्थ में सबका विकास हो पायेगा।

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Nanda Dulal Bhatttacharyya

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पेशे से पत्रकार, निष्पक्ष, सच्ची और ज़मीन से जुड़ी रिपोर्टिंग का जुनून

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