हक़ीकत न्यूज़ डेस्क, पटना, बिहार: हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मराठी, बंगाली, पाली, प्राकृत और असमिया भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया है। इस फैसले के बाद, बिहार में भोजपुरी को भी आधिकारिक भाषा का दर्जा देने की पुरानी मांग को नया समर्थन मिल गया है। बिहार में इस मांग का समर्थन खासकर विपक्षी महागठबंधन द्वारा किया जा रहा है, जिसमें राष्ट्रीय जनता दल (राजद), कांग्रेस, और भाकपा (माले) लिबरेशन जैसी पार्टियां शामिल हैं महागठबंधन के वरिष्ठ नेताओं ने कहा है कि वे भोजपुरी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कराने और इसे आधिकारिक भाषा का दर्जा दिलाने के लिए संसद में आवाज उठाएंगे। राजद के सांसद सुधाकर सिंह और भाकपा (माले) के लोकसभा सदस्य सुदामा प्रसाद ने इस मुद्दे को विशेष रूप से उठाया है। उनका कहना है कि भोजपुरी बिहार के भोजपुर, रोहतास, कैमूर, बक्सर, सारण, गोपालगंज और झारखंड के कई हिस्सों में व्यापक रूप से बोली जाती है, इसलिए इसे संवैधानिक मान्यता मिलनी चाहिए। सुदामा प्रसाद ने कहा कि बिहार सरकार को भोजपुरी भाषा को आधिकारिक दर्जा दिलाने के लिए केंद्र को एक विस्तृत रिपोर्ट भेजनी चाहिए। साथ ही, यह सवाल उठाया कि केंद्र सरकार भोजपुरी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने पर चुप क्यों है। वर्तमान में संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भाषाएं शामिल हैं, जबकि इस सूची में 38 और भाषाओं को जोड़े जाने की मांग की जा रही है, जिसमें भोजपुरी भी शामिल है। बिहार के संसदीय कार्य मंत्री विजय कुमार चौधरी ने इस मांग पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि किसी भाषा को आधिकारिक भाषा बनाने के लिए ठोस तथ्यों का होना आवश्यक है। अगर ठोस आधार हो, तो किसी भाषा को आधिकारिक दर्जा देने में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए।
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